अभ्रक के चार प्रकार होते है, जिन्हे विभिन्न नामो जैसे पीला ( पिनाक), सुर्ख ( दर्दुर ), सफेद ( नाग ) और काला ( वज्र ) अभ्रक के नाम से जाना जाता हैं ।
>> पिनाक अभ्रक - आग पर रख देने मात्र से जिसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं, वह पिनाक अभ्रक होती हैं ।
>> नाग अभ्रक - जिस अभ्रक को गर्म करने से सर्प के फुफ्कार जैसी आवाज आती है वह नाग अभ्रक होती है ।
>> दर्दुर अभ्रक - जिस अभ्रक में मैंड़क की आवाज निकले वह दर्दुर अभ्रक होती हैं ।
>> वज्र अभ्रक - जिस अभ्रक में आग से कोई प्रतिक्रिया नहीं होती वह वज्र अभ्रक होती हैं ।
" अभ्रक शुद्धिकरण विधि "
अभ्रक को भस्म का रूप देने से पहले उसको शुद्ध करना होता हैं । वज्र अभ्रक को तपाकर कांजी, गोमूत्र, त्रिफला काढ़ा, गाय का दूध या बेर की छाल का काढ़ा (इनमें से किसी एक में) सात बार डुबाकर अभ्रक को शुद्ध किया जाता हैं ।
अभ्रक को शुद्ध करने के बाद सबसे पहले उसका चूर्ण बनाया जाता हैं । शुद्ध अभ्रक का चूर्ण बनाने के लिए सर्वप्रथम धान्य अभ्रक बनाते हैं ।
" धान्य अभ्रक बनाने की विधि "
शुद्ध किए वज्र अभ्रक को पहले खरल में रखकर बिलकुल छोटे टुकड़े किए जाते हैं । और इसमें अभ्रक का चौथा हिस्सा धान मिलाकर दोनो को कम्बल में अच्छी तरह बांधकर पानी में तीन दिन तक भिगोकर रखा जाता हैं । जब अच्छी तरह भीग जाए तब उस कम्बल को पानी से निकालकर, थाली जैसे बर्तन में पानी और त्रिफला का काढ़ा डाल-डालकर जोरजोर से घिसा जाता हैं । घिसने से अभ्रक पानी के साथ निकल जाता हैं । इसी प्रक्रिया को तबतक दोहराए जबतक अभ्रक पूरी तरह न निकाल जाए । इसके बाद इस पानी को इकठ्ठा करके रख दें और ऊपर-ऊपर का पानी फेंक दे । और नीचे बचे अभ्रक को सूखने के बाद ऊपर दी विधि से शुद्ध कर ले ।
" अभ्रकभस्म के कार्य, फायदे और उपयोग "
अभ्रकभस्म का मुख्य कार्य सूक्ष्म अणुओं का निर्माण करना हैं, यह शरीर की संचालक इंद्रियों में पहुंचकर उनके घटकों की वृद्धी के लिए सूक्ष्म अणु पहुंचाते हैं । जिन विकारों में शरीर के घटक और सूक्ष्म अणु धीरे धीरे कम हो जाते हैं, तो यह इंद्रियों का सूखना होता हैं । इन सूक्ष्म अणुओं की काम करने की क्षमता प्रतिदिन कम होती जाती है । इस प्रकार के विकारों में अभ्रक भस्म सबसे अच्छा इलाज हैं ।
" मस्तिष्क विकारो में फायदेमंद "
रोगी के मस्तिष्क की शक्ति क्षीण होना, सिर में हलकापन, बारबार चक्कर आना, विचार करने पर एक विचार में दूसरे विचार का आना, खड़े रहने पर चक्कर आकर गिरने जैसी स्थिति, याददाश्त कम होना, कमजोरी में दुबलापन, चिंताग्रस्त, रोगी अप्रसन्न होता हैं । अभ्रक भस्म के रोगी को बारबार थोडा-थोडा और सिर पर अधिक पसीना आता है । इस स्थिति में अभ्रक भस्म कारगर और लाभप्रद होती हैं ।
" लकवा विकार में लाभप्रद "
लकवे की दो अवस्थाए होती हैं, प्रथम अवस्था की तीव्रता शांत होने के बाद दूसरी अवस्था में रक्तवाहिनीयो की शक्ति पुनः प्राप्त करने के लिए अभ्रक भस्म का प्रयोग किया जाता हैं । इस अवस्था में अभ्रक भस्म देने से रक्तवाहिनीओं के घटक प्रबल हो जाते हैं । राजयक्ष्मा या कोई दूसरा विकार हो जाने की चिंता करता हो तो उस आदमी को अभ्रक भस्म से जरूर फायदा होता हैं । इसी प्रकार जिस आदमी को आनंद के समय भी खुशी नहीं रहती हो और छोटी-छोटी बातों के ख्याल से दुःखी रहता हैं, तो ऐसा आदमी अभ्रक भस्म से ठीक हो जाता हैं ।
" बच्चो में बुद्धिमतता की क्षीणता "
बच्चों में कभी कभी उनकी उम्र के साथ-साथ उनकी बुद्धिमतता का विकास नही होता हैं । कई बच्चे हंसते-खेलते नही और कोई चेष्टा नहीं करते, केवल रोते रहते हैं । इस अवस्था में अभ्रक भस्म से फायदा होता है । लेकिन इस अवस्था का मूल कारण उपदंश का विकार होना चाहिए ।
मस्तिष्क के कुछ भागो का पूर्ण विकास न होने से छोटे बच्चों में विकार उत्पन्न हो जाते हैं । वे अपनी गर्दन नही उठा सकते, हाथ पैरों पर नियंत्रण नहीं रहता, शब्दोच्चार अटकते है । इसका कारण यह है कि मस्तिष्क से जो संदेश आते है, उनमें पूर्ण शक्ति नहीं होती है । इस विकार में भी अभ्रक भस्म से फायदा होता है ।
कुछ बच्चों की सिर की हड्डियां कमजोर होती है, कपाल की हड्डी बढ़ जाने से सिर का आकार भी बढ़ जाता है । कपाल पर बार-बार पसीना आता हैं । मुहं में पानी आए पर, छाले न होते हो, खांसी के साथ अधिक बल्गम आना, छाती की हड्डियां नरम होने से जोर से खांसने पर बीच का भाग आगे निकल आना, बार-बार उल्टी होना, इन लक्षणों में भी अभ्रक भस्म देने से फायदा होता है ।
" लडकियों को जवानी में ' हारिद्रक ' नामक विकार "
खून में लाल रक्त कण कम हो जाते हैं, किसी भी प्रकार की बिमारी न होने पर भी लडकी का मुंह फीका रहता हैं, बदन सूख जाता है, कभी बुखार कभी वमन हो जाती है । हाथ पैरों के नाखून पीले पड़ जाते हैं, उनका आकार भी बदलता जाता है और धीरे धीरे हरे रंग के हो जाते है । यह सब विकार खून में लाल रक्त कणो के कम हो जाने से होता हैं । अभ्रक भस्म खून में लाल रक्त कणो का निर्माण करने का कार्य करती है ।
हारिद्रक विकार का मूल कारण मानसिक हो तो उसमें अभ्रक भस्म ज्यादा फायदा करती हैं। कभी कभी इसके मानसिक व शारीरिक कारण का पता नही चल पाता, तो इस अवस्था में अभ्रक भस्म के साथ लोहभस्म देने से उत्तम लाभ मिलता हैं ।
" पंडुरोग व बवासीर में उपयोग "
पंडुरोग के मानसिक कारण हो या बातवाहिनी बिगडने से लाल रक्त कणो की कमी, तो अभ्रक भस्म से जरूर फायदा होता हैं ।
बवासीर में ज्यादा खून आने से पंडुरोग उत्पन्न होता है, इसका भी मूल कारण मानसिक या बातवाहिनी बिगडना होता हैं, इस अवस्था में अभ्रक भस्म लाभप्रद होती हैं ।
" आंतो के विकार में लाभप्रद "
आंतो की अशक्तता से गुदा मार्ग पर दबाव पड़ने से खून आने लगता है और जिससे कमजोरी होने लगती है, इस विकार में अभ्रक भस्म का उपयोग लाभप्रद होता है ।
इस अवस्था के दो प्रकार होते है, एक यकृत का बिगाडना, दूसरा आंतों की अशक्ततता, दूसरे प्रकार में अभ्रक भस्म अच्छी असरकारक होती है ।
" फेफड़ो के विकार में उपयोग "
फेफड़ो की अशक्तता से कफ विकृति होती है, जिससे तरह तरह के तीव्र और चिरकारी विकार उत्पन्न होते है । इन विकारों मे अभ्रक भस्म का प्रयोग होता है । फेफडो के विकारों में अभ्रक भस्म उत्तम दवा हैं ।
" हृदय विकारो में उपयोग "
अभ्रक भस्म हृदय को भी बल प्रदान करती है । जब हृदय की अशक्तता हो और कोई इंद्रियजन्य विकार न हो तो अभ्रक भस्म से जरूर फायदा होता हैं। इसी कारण हृदय या फेफडों के पुराने विकारों में अभ्रक भस्म देते हैं । अभ्रकभस्म धीरे धीरे काम करती है । कई दिनों से हुए बुखार में हृदय और फेफडों की अशक्तता के लक्षण पाए जाते हैं । इस विकार में जब तक बुखार रहेगा, तबतक हृदय और फेफडों की शक्ति बनी रहेगी ।
अभ्रक भस्म हृदय को उत्तेजित करती है और हृदय के स्नायु अणुओ को ताकत देती है । जहां जहां पर ताकत कम हो गयी हो वहां अभ्रक भस्म दी जाती हैं । हृदय के विकार से जब सूजन पैदा होती है तब भी अभ्रक भस्म फायदा करती है ।
" क्षयविकार में अभ्रक भस्म का उपयोग "
परजीवी जनित क्षयविकार को छोड़कर अन्य सभी क्षयविकार जैसे- अनुलोम और प्रतिलोम क्षय में अभ्रक भस्म कारगर दवा है । जन्तुजन्य क्षयविकार में भी जब ज्वर कम या ज्वर की आशंका रहती है, तब कभी कभी अभ्रक भस्म फायदा कर सकती है ।
निर्जन्तुक क्षयविकार में अभ्रक भस्म एक खात्रीका इलाज है । इस क्षयविकार का मुख्य लक्षण यह है कि किसी प्रकार का कारण नजर न आने पर भी शरीर के अवयव घटते जाते हैं, और शरीर दुबला-पतला होता जाता है । इस प्रकार के क्षय का असर कई दिनों तक रहता है और रोगी को इसका पता ही नही चलता, इसमे भी कभी कभी हल्का ज्वर आता है । निर्जन्तुक क्षयविकार की कौई भी अवस्था हो, अभ्रक भस्म के प्रयोग से जरूर फायदा होता है, यह लाल रक्त कणो की मात्रा बढ़ा देती है।
" पुराने कफ विकार में उपयोग "
पुराने से पुराने कफ विकारों में भी अभ्रक भस्म उत्तम औषधि है । पुरानी खांसी व दमा के कारण श्वास नलिका में घाव पड़ जाते है । इस विकार में रोगी निःशक्त हो जाता हैं। अभ्रक भस्म को शहद के साथ देने से अच्छा परिणाम मिलते हैं ।
कफात्मक श्वासविकार में दमे के साथ खांसी भी होती है और खांसते समय गाढ़ा सफेद कफ निकलता है । इसमें अधिक मात्रा में ठंडा पसीना आता है । इस हालत में अभ्रक भस्म देने से लाभ होता हैं ।
वृद्ध, अशक्त या दुबले पतले व्यक्ति को बरसात व सर्दियों के शुरुआत में थंडी हवा से दमा होता हैं, इसमें चुपचाप एक जगह बैठे रहने से आराम मिलता हैं, इस अवस्था में भी अभ्रक भस्म से फायदा होता हैं ।
कभी कभी अशक्त और पंडुरोगी स्त्रियों को एकाएक दमा होता है, बहुत घबराहट होती है और श्वास लेने में तकलीफ होती हैं । ऐसा श्वास नली के संकुचित हो जाने से होता है । श्वासवाहिनियों के संकुचित होने के कारण जितनी प्राणवायु की जरूरत शरीर को होती है, उतनी प्राणवायु शरीर को नही मिल पाती । इस कारण शरीर में जलन पैदा हो जाती है, यह स्थिति प्राणवायु के कम होने से होती है । श्वासवाहिनियों के संकुचन को कम करने और बिगडे हुए पित्त का शमन करने का काम अभ्रक भस्म करती है । इस विकार में अभ्रक भस्म के साथ चंद्रप्रभा, रुद्रवंती और आरोग्यवर्धिनी दवाइयां देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं ।
जिन रोगियों को बार बार खांसी आती हैं, कुछ समय बंद रहती और फिर आ जाती हैं । जिन्हे विशिष्ट पदार्थ के सेवन से खांसी आती है, उन रोगियों के शरीर में ऐसी आदतें पड़ जाती है, कि उनकी प्रकृति उन्ही चीजों को नहीं चाहती है । इस आदत को हटाने का कार्य अभ्रक भस्म करती है । इस विकार में अभ्रक भस्म का उपयोग केवल शहद के साथ करना चाहिए और इसका उपयोग रोज न करके कुछ दिन छोड-छोड़कर करे ।
थोडे से चलने मात्र से श्वास भरना, रोगी पहाड़ पर नहीं चढ़ पाना, दम भरना, नाडी कमजोर पड़ना इन लक्षणों में अभ्रक भस्म देने से फायदा होता है। रक्तवाहिनियों का कवच पतला होता है। और जिस भाग में पतला होता हैं, वहां कफ के संचय के कारण रक्तवाहिनियाॅ फूल जाती है । इस विकार में और इसके आगे की रक्तपित्त की अवस्था मे भी अभ्रक भस्म एक मात्र दवा है, इसमें अभ्रक भस्म के साथ प्रवालभस्म और गिलोय का सत्व देते हैं । इसी विकार में यदि प्रथम उपदंश का विकार हुआ हो, तो इसी मिश्रण के साथ सारिवावलेह भी दिया जाता है ।
अभ्रक भस्म का प्रधान कार्य शरीर में लाल रक्त कणो को ताकत देना व उनकी मात्रा बढ़ाना है । इसलिए जिस अनुपान के साथ या द्रव्य के साथ वह दिया जाए उसका कार्य स्पष्ट हो जाता है । जैसे- दालचीनी के समान द्रव्यों के साथ देने से निमोनिया और टायफॉइड में फायदा होता है । क्यों कि इन रोगों में परजीवी होते हैं और उनका नाश करने की शक्ति श्वेत अणुओ में होती हैं । लोहभस्म के साथ अभ्रक भस्म देने से श्वेत अणुओ में अधिक शक्ति आ जाती है । इसी कारण पंडुरोग में अभ्रक भस्म, लोहभस्म और त्रिफला को शहद के साथ दिया जाता है ।
" पेट सम्बन्धित विकार में उपयोग "
पेट की अशक्तता से पित्त का स्राव कम होता है, तो एक तरह से अपचन का विकार उत्पन्न हो जाता है । इसको अशक्तताजन्य अपचन कहते हैं। इस अपचन में अभ्रक भस्म देने से पित्तोत्पादक पिंड और आंतो को शक्ति मिलती है, और यह विकार ठीक हो जाता है। भोजन का स्वाद न समझ पाना भी आंतो के विकार कारण होता है।
पेट में रसवाहिनी और रसोत्पादक पिंड के विकार से पेट में ग्रंथि बढ़ जाती है , इसमें हल्का-हल्का दर्द लगातार बना रहता है । इसके साथ ज्वर, कब्ज के कारण रोगी अशक्त रहता है । इसमें अभ्रक भस्म देना फायदेमंद होता हैं ।
गृहणी स्त्रियो में कब्जियत की समस्या के कारण रक्त दूषित हो जाता हैं, जिससे रक्तादि धातु बिगड़ जाता हैं । जिससे बार-बार मुंह में छाले होने लगते हैं । हाथ की उंगलीयॉ पर लाल चलते पड़ जाते हैं । जब यह विकार पुराना हो जाता है, तब इसका स्वरूप अति भयानक होता है । इसमें भी अभ्रक भस्म देने से फायदा होता हैं ।
अम्लपित्त का विकार पुराना हो गया हो और सूतशेखरादि औषधि से फायदा नही हो रहा हो तो अभ्रकभस्म फायदेमंद होती हैं ।
" अतिसार में अभ्रक भस्म के फायदे "
क्षयजन्य अतिसार में अभ्रक भस्म, मौक्तिकभस्म, शंखभस्म और कपर्दिकभस्म के मिश्रण से फायदा होता है ।
पुराने और कष्टकारक अतिसार जब बहुत दिनों तक बने रहते हैं, तो शरीर कमजोर हो जाता है, धातुपरिपोषण कार्य सुचारू रूप से नही हो पाता । इससे स्नायु कमजोर हो जाती हैं, इससे मल धारण नही हो पाता और बारबार अतिसार आती रहती है । इस प्रकार के अतिसार में अभ्रक भस्म से फायदा होता हैं ।
" मूत्र विकारों में अभ्रक भस्म के फायदे "
अवरोधक स्नायु की अशक्तता से बून्द-बून्द पेशाब आता रहता है । थोड़ा-सा पेशाब भी थैली में भरता है तो उसे जल्द निकालने की इच्छा होती है । पेशाब के इस विकार में अभ्रक भस्म अच्छा लाभ देती है ।
पुराने मूत्रकृच्छ्र विकार में भी अभ्रक भस्म का उपयोग होता है । पेशाब में बार-बार खून आने के विकार में भी अभ्रक भस्म से फायदा होता है । मधुमेह के विकार में शरीर में कम हुए परमाणु अभ्रक भस्म से बढ़ जाते हैं । इस विकार में अभ्रक भस्म के साथ शिलाजीत भी दी जाती हैं ।
मानसिक आघात या वातवाहिनियों के अधिक परिश्रम से नपुंसकता आती है, तो अभ्रक भस्म से नपुंसकता दूर हो जाती हैं।
जननेन्द्रिय के स्नायू जननेन्द्रिय, जननेन्द्रिय के परमाणु, जननेन्द्रिय को चेतन करने वाली नसों और उनका मस्तिष्क में स्थान, इन सब अवयवों को अभ्रक भस्म शक्ति देती है, जिससे नपुंसकता दूर हो जाती हैं ।