कॉस्टिकम ( CAUSTICUM ) के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग व फायदों का विश्लेषण -
- बेहद कमजोरी
- सायंकाल में मानसिक लक्षणों का बढ़ना
- दुख , शोक , भय व रात्रि जागरण से रोगों की उत्पत्ति
- स्पर्श सहन नहीं कर पाना
- गठिये में पुठ्ठों और नसों का छोटा पड़ जाना और ठंडी हवा में आराम
- खांसी में ठंडे पानी के घूंट से आराम तथा कूल्हे के जोड़ में दर्द
- मोतियाबिंद में फायदेमंद
- मस्सों में लाभप्रद
- दिन में होने वाले मासिक धर्म में आराम
" कॉस्टिकम की प्रकृति "
ठंडा पानी पीने से, बिस्तर की गर्मी से, हल्की हरकत से, गठिये में नमीदार हवा से रोगी को आराम मिलता हैं । जबकि खुश्क व ठंडी हवा से, त्वचा रोग के दब जाने से रोगों से तथा सायंकाल को रोगी के रोग में वृद्धि होती हैं ।
" बेहद कमजोरी - गला, जीभ, चेहरा, आँख, मलाशय, मूत्राशय, जरायु, हाथ - पैर आदि का पक्षाघात "
इस औषधि का मेरूदंड पर विशेष क्रिया होती हैं। क्योंकि वहीं से ज्ञान - तंतु भिन्न -भिन्न अंगों में जाते हैं इसलिये मेरुदंड के ज्ञान तंतुओं पर ठंड आदि के कारण या चिरस्थायी दुख , शोक , भय , प्रसन्नता , क्रोध , खिजलाहट आदि के कारण जिन्हें रोगी सह नहीं सकता, उसको भिन्न - भिन्न अंगों में से किसी भी अंग में पक्षाघात हो सकता हैं ।
पक्षाघात किसी एक अंग का होता हैं। ठंड लगने या भय आदि से जब शुरु - शुरु मे किसी अंग में यह रोग होता हैं तो इसे एकोनाइट ठीक कर देती हैं। परन्तु जब एकोनाइट काम नहीं करती, तब कॉस्टिकम देने की जरूरत पड़ती हैं।
कॉस्टिकम में रोग का प्रारंभ बेहद कमजोरी के कारण शुरु होता हैं । हाथ - पैर या शरीर के अंग कापने लगते हैं , रोगी बलहीनता में डूबता जाता हैं । मांसपेशियों की शक्ति धीरे धीरे क्षीण होती जाती हैं । गले में पक्षाघात , भोजन प्रणाली में पक्षाघात , डिफ्थीरिया के बाद इन अंगों में पक्षाघात , आँख की पाठक का पक्षाघात हो सकता हैं।
मलाशय , मूत्राशय , जरायु का पक्षाघात , हाथ - पैर का शक्तिहीन हो जाना , बेहद सुस्ती , थकान , अंगों का भारीपन ये सब पक्षाघात की तरफ धीरे - धीरे बढ़ने के लक्षण हैं । कॉस्टिकम का पक्षाघात प्राय दाई तरफ होता हैं । जिनमें कॉस्टिकम का प्रयोग लाभप्रद हैं ।
>> एक - एक अंग का पक्षाघात - पक्षाघात इस औषधि का चरित्रगत लक्षण हैं । शरीर के किसी एक अंग पर इस रोग का आक्रमण होता हैं । उदाहरणार्थ , अगर ठंडी , खुश्क हवा में लम्बा सफर करने निकले और हवा के झोके आते जाये , तो किसी एक अंग पर इस हवा का असर पड़ जाता हैं और वह अंग सुन्न हो जाता हैं , काम नहीं करता । ठंड से चेहरा टेढ़ा हो जाता हैं , आवाज़ बैठ जाती हैं , भोजन निगलने की मांसपेशियां काम नहीं करती हैं, जीभ लड़खड़ाने लगती हैं , आँख की पलक झपकना बंद कर देती हैं , पेशाब नहीं आता , शरीर भारी लगता हैं । इन सब लक्षणों पर कॉस्टिकम बहुत अच्छा काम करती हैं ।
>> मलाशय से मल अपने - आप निकल जाना या कब्ज होना - मलाशय पर पक्षाघात का असर दो तरह का हो सकता हैं । इसमें मलाशय काम नहीं करता इसलिये या मल अपने - आप निकल जाता हैं , या फिर कब्ज के कारण मल निकलेगा ही नहीं । दोनों अवस्थाए पक्षाघात का परिणाम हैं ।
>> मूत्राशय से अपने - आप मूत्र निकल जाना या बन्द हो जाना - मलाशय की तरह ही मूत्राशय के पक्षाघात का भी यह स्वाभाविक परिणाम है कि या तो मूत्र अपने - आप निकल जाता है या फिर बंद हो जाता है। क्योंकि उसे रोकने वाली पेशियां काम नहीं करती, जिससे कोशिश करने पर भी पेशाब नहीं आता है । ये दोनों अवस्थाएं भी पक्षाघात का ही परिणाम होती हैं ।
>> बच्चों का नींद में पेशाब निकल जाना - प्राय : देखा जाता है की बच्चे सोने के बाद पेशाब कर देते हैं , या जागते हुए भी अनजाने में पेशाब कर देते है । बच्चा इस प्रकार पेशाब पहली नींद में ही कर दे , तो कॉस्टिकम अच्छा लाभ करती हैं । बच्चे को पता ही नहीं चलता कि उसने पेशाब कर दिया है । जब वह हाथ लगाकर देखता है तो पता चलता है की उसका कच्छा गीला हो गया है तब वह समझता जाता है कि उसका पेशाब अपने - आप ही निकल गया है ।
" सायंकाल मानसिक लक्षणों का बढ़ना "
कॉस्टिकम औषधि का रोगी हर समय उदास रहता है । मन की यह अवस्था उस समय बहुत बढ़ जाती है जब दिन का उजाला घटने लगता है। रोगी उस समय डरा हआ ,और घबराया हुआ रहता है । उसके मन की एकाग्रता भंग हो जाती है और उसे कैसे भी शान्ति नहीं मिलती । उसे ऐसा लगता है कि कोई संकट आ खड़ा हुआ है । उसकी अंतर आत्मा से आवाज आती है कि उसने कोई अपराध किया है ।
इस घबराहट में उसे बार - बार पाखाने की हाजत होती है । घबराहट में चेहरा लाल हो जाता है और उस समय बार - बार पाखाने की हाजत होना कॉस्टिकम का विशेष लक्षण होता है । रोगी का स्वभाव चिड़चिड़ा , संदेहशील तथा दूसरों के दोष दूंढने वाला हो जाता हैं। चिड़चिड़ा होना और दूसरों के प्रति सहानुभूति प्रकट करना कॉस्टिकम ही एक अद्भुत लक्षण है ।
" दुख, शोक, भय व रात्रि जागरण से रोगों की उत्पत्ति "
यह औषधि विशेषकर उन मानसिक रोगियों के लिए अत्यन्त उपयोगी व लाभप्रद होती है, जो दीर्घकालीन दुख , शोक व भय से ग्रसित होते है ।
>> रात्रि जागरण से उत्पन्न रोग - कई दिनों तक रात्रि जागरण में जो रोग हो जाते है उनके लिये भी यह लाभप्रद है । इन रोगों की उत्पत्ति भी जीवन शक्ति के निम्न स्तर पर पहुच जाने के कारण होती हैं । इन रोगों में जब रोगी सोचने लगता है तब उसकी तबीयत और बिगड़ लगती है ।
>> भय या त्वचा रोग के दब जाने से मृगी , तांडव , ऐंठन होना - कभी - कभी मृगी , तांडव तथा ऐंठन का रोग व्यक्ति के भीतर किसी भय के कारण उत्पन्न होते है । भय के कारण उत्पन्न इन रोगों को कॉस्टिकम दूर कर देती है । भय के अतिरिक्त किसी त्वचा के रोग को लेप आदि से दवा देने से भी इस प्रकार के मानसिक - लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ।
>> यौवन काल में मासिक धर्म की गड़बड़ी - यौवन काल में लड़कियों में मासिक धर्म की गड़बड़ी इस औषधि के लक्षण हैं । मन में भय के बैठ जाने , दानों के दब जाने या मासिक धर्म के अनियमित होने परयदि मृगी , तांडव या ऐंठन हो और रोगी अनजाने में अपने हाथ - पैर हिलाता रहे या सोते हुए हाथों या पैरों को झटकता हो , तो कॉस्टिकम उपयोगी औषधि होती है ।
>> मस्तिष्क के पक्षाघात से पागलपन - ज्यादा पागलपन के रोग लिए तो बेलाडोना अधिक कारगर होती हैं , परन्तु जब रोग पुराना हो जाता है और मस्तिष्क के पक्षाघात के कारण रोग ठीक नहीं होता, रोगी हमेशा चुपचाप रहता हो , किसी से बात नहीं करता , अपने दिल मे निराश रहता है , तब पक्षाघात के कारण उत्पन्न इस पागलपन को कॉस्टिकम ठीक कर देती है ।
" स्पर्श सहन नहीं कर पाना "
स्पर्श सहन नहीं कर पाना इस औषधि का चरित्रगत लक्षण है । इसमें खांसते हुए छाती में, गले में, पेट की शोथ में तथा दस्त के समय कपड़ों के स्पर्श से फोड़े जैसा दर्द होता है। मलद्वार में लाली पड़ जाती है जिसे छूने पर दर्द होता है। स्पर्श के प्रति इस प्रकार की असहिष्णुता कॉस्टिकम का एक व्यापक लक्षण है । कॉस्टिकम में स्पर्श न सह सकने का दर्द श्लेष्मिक स्तर का होता है , जिसमे अघपके फोड़े जैसा दर्द होता हैं।
" गठिये में पुठ्ठों और नसों का छोटा पड़ जाना "
गठिये के इलाज में प्राय अनेक प्रकार के तेलों से मालिश की जाती हैं। इनके परिणामस्वरूप जोड़ और अंग विकृत हो जाते हैं और पुठ्ठे और नसें छोटी पड़ जाती है। रोगी बाँहों व पैरों को सीधा नही कर पाता, उनको सीधा करने से वे अकड़ जाते हैं।
" ठंडी हवा में आराम "
गठिये में कॉस्टिकम का विशेष लक्षण यह है कि रोगी को ठंड या नम हवा में आराम मिलता है । जब नम या सर्द मौसम आता है तो गठिया ठीक हो जाता है । साधारण तौर पर गठिये का रोग ठण्ड से बढ़ता है , परन्तु कॉस्टिकम में उल्टा होता है ।
" खांसी में ठंडे पानी के घूंट से आराम तथा कूल्हे के जोड़ में दर्द "
सूखी खांसी आती है , जिससे सारा शरीर हिल जाता है , रोगी कफ को बाहर निकालने की कोशिश करता है , लेकिन निकाल नहीं पाता , वह इसे अन्दर ही निगल जाता है । रोगी को खांसते हुए गले और छाती में अधपके फोड़े के समान दर्द होता है । उसे इस खांसी में ठंडे पानी का घूंट पीने से आराम मिलता है। इस कफ में लेटने पर खांसी बढ़ जाती है और जब रोगी खांसता है तो उसके कूल्हे के जोड़ों में दर्द होता है ।
" मोतियाबिंद में फायदेमंद "
इस औषधि में रोगी रोशनी को सहन नहीं पाता । आँखों के आगे काले गोल धब्बे उड़ते हुए दिखते हैं । होम्योपैथिक में इसे मोतियाबिंद की अत्युत्तम औषधि मानी गई है । रोगी को धुंध जैसा दिखाई देता है और आँखों के सामने एक पर्दा सा आ जाता है।
" मस्सों में लाभप्रद "
इस औषधि में शरीर पर मस्से पैदा करने की शक्ति होती है । यह शरीर , आँखों की पलको , चेहरे व नाक पर मस्से पैदा कर सकती है। लेकिन यह मस्सों को दूर भी करती है ।
" दिन में होने वाले मासिक धर्म में आराम "
जब मासिक धर्म सिर्फ दिन में होता हो और लेटने से बंद हो जाता हो तो यह इसका विचित्र लक्षण है ।
" कॉस्टिकम के अन्य लक्षण "
>> रोगी आग से जलने के बाद ठीक नहीं हो रहा हो तो व कॉस्टिकम से ठीक हो जाता है ।
>> पुराना घाव ठीक होकर यदि बार - बार उत्पन्न हो जाता है तो यह अतिउत्तम औषधि है ।
>> मोतियाबिंद में कुछ दिन तक प्रतिदिन 30 शक्ति की एक मात्रा देने से लाभ होता है ।
>> यदि यह देखा जाए कि रोगी दवा देने के बाद कुछ देर तक ही ठीक रहता है और फिर वही हालत हो जाती है तो कॉस्टिकम बहुत ही उत्तम औषधि है ।
>> यदि सुबह के समय आवाज बंद रहे तो कॉस्टिकम देने से आराम मिलता है ।
" कॉस्टिकम की शक्ति तथा प्रकृति "
कॉस्टिकम प्रमुख तोर से सभी शक्तियों में उपलब्ध है। पुराने रोगों में उच्च शक्ति एक या दो बार दी जाती है | यह औषधि शीत प्रकृति के लिए है । औषधि के प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक की सलाह जरूर करे।