- पेट के ऊपरी भाग में वायु का प्रकोप-
- किसी कठिन रोग के बाद फायदेमंद
- गर्म हालत से जुकाम, गर्म एकदम ठंड में आने से उत्पन्न रोग
- हवा की लगातार इच्छा ( न्यूमोनिया, दमा, हैजा आदि में )
- जलन, ठंडक तथा पसीना ( भीतर जलन बाहर ठडक )
- शरीर तथा मन को शिथिलता ( रुधिर का विषैला फोड़ा, सड़ने वाला जख्म, वेरीकोज वेन्ज, थकान आदि )
- कार्बो वेज मृत संजीवनी दवा
" कार्बो वेज की प्रकृति "
ठंडी हवा से, पंखे की हवा से, डकार आने से रोग में कमी आती हैं। जबकि पांव ऊपर करके लेटने से, गर्मी से, रुधिर स्राव से, वृद्धावस्था की कमजोरी और गारिष्ट भोजन से पेट में वायु का बढ़ जाने से रोग में वृद्धि होती हैं।
" पेट के ऊपरी भाग मे वायु का प्रकोप "
कार्बो वेज औषधि वानस्पतिक कोयले से निर्मित की जाती हैं । वानस्पतिक कोयले में रासायनिक तत्व होते हैं, जो बदबू को समाप्त करने में सहायक होते हैं । यह फोड़ो और मुख की बदबू दूर कर देता हैं। कार्बो वेज पेट की गैस को भी दूर करती हैं, विषैले, सड़ने वाले जख्म को भी ठीक करती हैं ।
" किसी कठिन रोग के बाद फायदेमंद "
किसी पुराने रोग के बाद किसी भी रोग के चले आने का अभिप्राय यह हैं, कि जीवन शक्ति की कमजोरी दूर नहीं हुई, और यदि पुराना रोग ठीक हो गया हो, तो भी जीवनी शक्ति अभी अपने स्वस्थ रूप में नही आयी ।
उदाहरणार्थ - यदि जब बचपन में कुकर खांसी हुई हो और तब से दमा चला आ रहा हो, सालो से शराब के दौर से गुजरने से अजीर्ण रोग से पीड़ित हो, सामर्थ्य से ज्यादा परिश्रम करने के बाद तबीयत गिरी - गिरी रहती हो, जब से चोट लगी हो और चोट तो ठीक हो गई किन्तु मौजूदा शिकायत की शुरुआत हो गई, ऐसी हालत में कार्बो वेज लाभप्रद होती हैं ।
इस समय रोगी मे जो लक्षण मौजूद हो वे काबों वेज में पाये जाते हो क्योंकि इस रोग का मुख्य कारण जीवनी शक्ति का अस्वस्थ और ह्रासमय होना हैं । इस जीवन शक्ति के ह्रासमय होने के कारण ही रोग पीछा नहीं छोड़ते ।
" गर्म हालत से जुकाम , गर्म एकदम ठंड में आने से उत्पन्न रोग "
कार्बो वेज औषधि जुकाम, खांसी और सिरदर्द आदि के लिए मुख्य औषधि हैं, जिसमें रोगी जुकाम से पीड़ित रहता हैं ।
>> कार्बो वेज की जुकाम, खांसी और सिरदर्द की शुरुआत - रोगी गर्म कमरे में यह सोच कर जाता हैं कि उसे कुछ देर गर्म कमरे मे रहना हैं । शीघ्र ही उसे गर्मी महसूस होने लगती हैं, और फिर यह सोचकर कि अभी तो बाहर जा रहा हूं और गर्म कोट को नही उतारता ।
इस प्रकार इस गर्मी का उस पर असर हो जाता है और उसे छीकें आने लगती है और जुकाम हो जाती हैं । नाक से पनीला पानी बहने लगता है और दिन रात छीकता रहता हैं ।
कार्बो वेज का जुकाम नाक से शुरु होता हैं, फिर गले की तरफ जाता हैं, फिर श्वास नलिका की तरफ जाता हैं और अंत में छाती में पहुँचता है ।
जब तक कार्बो वेज के रोगी का नाक बहता रहता हैं, तब तक उसे आराम रहता हैं, परन्तु यदि गर्मी से होने वाले इस जुकाम में वह ठंड मे चला जाए, तो जुकाम एकदम बंद हो जाती है और सिरदर्द शुरु हो जाता हैं । बहते हुए जुकाम में ठंड लग जाने से, नम हवा में या अन्य किसी प्रकार से जुकाम का स्राव रुक जाने से सिर के पीछे के भाग मे दर्द, आँख के ऊपर दर्द, सारे सिर में दर्द, हथौड़े के लगने के समान दर्द होने लगता हैं ।
पहले जो जुकाम गर्मी के कारण हुआ था उसमें कार्बो वेज उपयुक्त दवा होती हैं । और जुकाम के रुक जाने के बाद कैलि बाईक्रोम, कैलि आयोडाइड, सीपिया उपयुक्त होती हैं ।
" हवा को लगातार इच्छा ( न्यूमोनिया, दमा, हैजा आदि ) "
कार्बो वेज गर्म उष्ण प्रकृति की औषधि हैं। यह गर्म प्रकृति की होने के कारण रोगी को ठंडी और पंखे की हवा की ज़रूरत पड़ती हैं ।
कोई भी रोग हो जैसे - बुखार, न्यूमोनिया, दमा, हैजा आदि में रोगी कहे - हवा करो, हवा करो तो कार्बो वेज की मानी जाती हैं । अगर रोगी कहे कि मुंह के सामने पंखे की हवा करो तो कार्बो वेज और यदि मुंह से दूर पंखे को रख कर हवा करो तो लैकेसिस औषधि उपयुक्त होती हैं । कार्बो वेज में जीवन शक्ति अत्यंत शिथिल हो जाती हैं, इसलिए रोगी को हवा की बहुत इच्छा होती हैं ।
>> न्यूमोनिया - यदि न्यूमोनिया में रोगी इतना निर्बल हो जाए कि कफ जम जाए और ऐन्टिम टार्ट से भी कफ न निकले तो जीवन शक्ति की शिथिलता के कारण कफ नहीं निकल रहा । उस हालत मे अगर रोगी हवा के लिए भी बेताब हो तो कार्बो वेज से लाभ होता हैं ।
>> दमा - दमे के रोगी को सांस लेने में परेशानी होती हैं । उसकी छाती मे इतनी कमजोरी हो जाती हैं कि उसे लगता है कि अगला सांस शायद ही ले पाए । रोगी के हाथ पैर ठंडे होते हैं, मृत्यु की छाया उसके चेहरे पर दिखने लगती हैं, छाती से साय - साय की आवाज़ आती हैं, रोगी सांस लेने के लिए व्याकुल होता हैं तो कार्बो वेज लाभप्रद होती हैं।
>> हैजा - न्यूमोनिया और दमे की तरह हैजे में भी कार्यों वेज के लक्षण होते हैं, जब रोगी हवा के लिए व्याकुल हो जाता हैं । हैजे में जब रोगी चरम अवस्था में पहुच जाता हैं तो हाथ पैरों में ऐंठन नहीं रहती, रोगी का शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ जाए, शरीर से ठंडा पसीना आने लगे, सांस ठंडी लगे, शरीर नीला पड़ने लगे, रोगी मुर्दे की तरह हो जाए, ठंडी हवा से आराम मिले और कुछ भी कहने कि हालत में न हो तो कार्बो वेज रोगी को मृत्यु से बाहर निकाल देती हैं।
" जलन, ठंडक तथा पसीना "
भीतर जलन बाहर ठंडा कार्बो वेज औषधि का विशेष लक्षण हैं। रोगी भीतर से गर्मी तथा जलन अनुभव करता हैं, परन्तु बाहर त्वचा पर वह ठंड अनुभव करता हैं ।
जलन कार्बो वेज का व्यापक लक्षण हैं शिराओं में जलन, बारीक रक्त वाहिनियों में जलन, सिर में जलन, त्वचा में जलन, शोथ में जलन, सब जगह जलन होती हैं। परन्तु इस भीतरी जलन के साथ जीवन शक्ति की शिथिलता के कारण हाथ पैर ठंडे, खुश्क या चिपचिपे, घुटने ठंडे, नाक ठंडी, कान ठंडे, जीभ ठंडी पड़ जाती हैं । क्योंकि शिथिलावस्था में हृदय का कार्य शिथिल पड़ जाता हैं, इसलिये रक्त संचार के शिथिल हो जाने से सारा शरीर ठंडा हो जाता हैं । यह शरीर की पतनावस्था है ।
इस समय भीतर से गर्मी अनुभव कर रहे, बाहर से ठंडे हो रहे शरीर को ठंडी हवा की जरूरत पड़ती है । इस प्रकार की अवस्था प्राय हैजे आदि रोग में होती हैं, जब कार्बो वेज लाभ करती हैं ।
" शरीर तथा मन को शिथिलता ( रुधिर का रिसते रहना, विषला फोड़ा, सड़ने वाला जख्म, गैंग्रीन, वेरीकोज वेन्ज ) "
शिथिलता इस औषधि का चरित्रगत लक्षण हैं । प्रत्येक लक्षण के आधार मे शिथिलता, कमजोरी, असमर्थता होती हैं । इस शिथिलता का प्रभाव रुधिर पर जब पड़ता हैं तब हाथ पैर फूल जाते हैं क्योंकि रुधिर की गति धीमी पड़ जाती हैं, रक्त शिराएं उभर आती हैं, रक्त संचार अपनी स्वाभाविक गति से नहीं होता ओर वैरीकोज वेन्ज़ रोग हो जाता हैं।
रक्त का संचार सुचारु रूप से चले इसके लिए टांगें ऊपर करके लेटना पड़ता हैं । रक्त सचार की शिथिलता के कारण अंग सूकने लगते हैं और अंगों में सुन्नपन आने लगती हैं । रोगी दायीं तरफ लेटता हैं, तो दाया हाथ सुन्न हो जाता है और अगर बायी तरफ लेटता है तो वाया हाथ सुन्न हो जाता हैं । रक्त संचार इतना शिथिल हो जाता है कि अगर किसी अंग पर दबाव पड़े, तो उस जगह का रक्त संचार रुक जाता हैं । रक्त संचार की इस शिथिलता के कारण विषैले फोड़े, सड़ने वाले फोड़े, गैग्रीन आदि हो जाते हैं।
रुधिर का नाक, जरायु, फेफड़े, मूत्राशय आदि से रिसते रहना - रुधिर का बहते रहना इस औषधि का लक्षण हैं । नाक से हफ्तो तक प्रतिदिन नकसीर बहती हैं । जहा शोथ हुई वहा से रुधिर रिसता हैं । जरायु से, फेफड़ों से, मूत्राशय से रुधिर रिसता रहता हैं, रुधिर की कय भी हो जाती हैं । रूधिर बारीक रक्त वाहिनियों द्वारा धीमे - धीमे रिसता है ।
रोगिणी का ऋतु स्राव के समय जो रुधिर चलना शुरु होता है वह रिसता रहता है और उसका ऋतु काल लम्बा हो जाता है । एक ऋतु काल से दूसरे ऋतु काल तक रुधिर रिसता रहता हैं । बच्चा जनने के बाद रुधिर बन्द हो जाना चाहिए, परन्तु इस औषधि में रुधिर वाहिनियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, इसलिए रुधिर बंद होने की बजाय रिसता रहता हैं । ऋतु काल, प्रजनन आदि की इन शिकायतों को तथा इन शिकायतों से उत्पन्न होने वाली कमजोरी को कार्बो वेज दूर कर देती हैं ।
कभी - कभी बच्चा जनने के बाद प्लेसेन्टा नहीं निकलता और धीरे - धीरे रुधिर रिसने लगता हैं, जरायु में वेग से रुधिर का प्रवाह छोड़कर प्लेसेन्टा को बाहर धकेलने की शक्ति नही होती । अगर इस हालत मे रुधिर धीरे - धीरे रिस रहा हो, तो कार्बो वेज की कुछ मात्राएँ देने से प्लेसेन्टा बाहर आ जाता हैं और शल्य क्रिया करने की जरूरत नही पड़ती ।
अगर जच्चा अत्यत कमजोर हो जाए, पेट मे हवा भरती रहे, उसकी शिराए फूल जाए , तो कार्बो वेज की कुछ मात्राए देने से वह प्रजनन के कष्ट को बर्दाश्त करने की क्षमता पा जाती हैं, परन्तु इस औषधि का प्रयोग तभी हो जब पूर्ण लक्षण मौजूद हो । हृष्ट पुष्ट व ताकतवर स्त्री इस कष्ट को आसानी से बर्दाश्त कर सकती हैं, उसे कार्बो वेज देने की जरूरत नहीं ।
बच्चे को दूध पिलाने में माता को अत्यंत कमजोरी व शिथिलता अनुभव हो तो उसे कार्बो वेज दिया जा सकता है ।
" विषेला फोड़ा , सड़ने वाला जख्म , गैग्रीन "
जब रक्त वाहिनियां शिथिल पड़ जाती हैं और कोई चोट लगती हैं, तो वह ठीक होने के स्थान में सड़ने लगती हैं । फोड़े ठीक नही होते, उनमे से हल्का - हल्का रुधिर रिसता रहता हैं और विषैले हो जाते हैं, और जब फोड़े ठीक न होकर विषैला रूप धारण कर लेते हैं, तो गैग्रीन बन जाती हैं ।
जब भी कोई रोग शिथिलता की अवस्था में आ जाता है, ठीक होने मे नही आता, तब कार्बो वेज जीवन शक्ति को सचेष्ट करने का काम करता है ।
>> वेरीकोज वेन्ज - रुधिर की शिथिलता के कारण हृदय की तरफ जाने वाला नीलिमायुक्त अशुद्ध - रक्त बहुत धीमी चाल से जाता हैं, इसलिए शिराओं में रक्त एकत्रित हो जाता है और शिराएँ फूल जाती हैं । इस रक्त के वेग को बढाने के लिए रोगी को अपनी टागे ऊपर करके लेटना पड़ता हैं । रक्त की इस शिथिलता को कार्बो वेज दूर कर देती है क्योंकि इसका काम रक्त संचार की कमजोरी को दूर करना है ।
>> शारीरिक तथा मानसिक थकान - शारीरिक थकान तो इस औषधि का चरित्रगत लक्षण हैं, क्योंकि शिथिलता इसके हर रोग में जाती हैं । शारीरिक शिथिलता के साथ रोगी मानसिक शिथिल भी हो जाता हैं । विचार में शिथिल, सुस्त, शारीरिक व मानसिक कार्य के लिए अपने को तत्पर नहीं कर पाता ।
" कार्बो वेज मृत सजीवनी दवा "
कार्बो वेज औषधि को मृत संजीवनी दवा कहा जाता हैं। जब रोगी ठंडा पड़ जाता हैं, नब्ज भी कठिनाई से मिलती हैं, शरीर पर ठंडा पसीना आने लगता हैं, चेहरे पर मृत्यु छाई रहती हैं, इस अवस्था में रोगी बच सकता हैं तो इस औषधि से बच सकता हैं । कार्बो वेज जैसी कमजोरी अन्य किसी औषधि में नही हैं, इसलिए मरणासन्न व्यक्ति की कमज़ोर हालत में यह मृत संजीवनी का काम करती हैं । उस समय 200 या उच्च शक्ति की मात्रा देने से रोगी के जी उठने की उम्मीद हो सकती हैं ।
" कार्बो वेज के अन्य लक्षण "
>> ज्वर में प्यास - ज्वर की शीतावस्था में प्यास व ऊष्णावस्था में प्यास का अभाव यह एक विचित्र लक्षण हैं।
>> तपेदिक की अन्तिम अवस्था - तपेदिक की अन्तिम अवस्था में जब रोगी सूक जाता हैं, तो खांसी से परेशान रहता हैं, रात को पसीने से तर रहता हैं, साधारण खाना खाने पर भी पतले दस्त आते हैं, तब इस औषधि से रोगी को कुछ लाभ होता हैं।
>> वृद्धावस्था की कमजोरी - युवकों को जब वृद्धावस्था के लक्षण सताने लगते हैं या वृद्ध व्यक्ति जब कमज़ोर होने लगते हैं, हाथ - पैर ठंडे रहते हैं, नसें फूलने लगती है, तब कार्बो वेज लाभप्रद होती हैं । रोगी वृद्ध हो या युवा, जब उसके चेहरे की चमक चली जाती है, जब वह काम करने की जगह लेटे रहना चाहता है, अकेला रहना पसन्द करता है, दिन के काम से इतना थक जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक श्रम उसे भारी लगता है, तब इस औषधि से लाभ होता हैं ।
" कार्बो वेज की शक्ति तथा प्रकृति "
यह गहरी तथा दीर्घकालिक प्रभाव करने वाली औषधि हैं । यह 30, 200 व अधिक शक्तियों में उपलब्ध हैं । यह गर्म प्रकृति की औषधि हैं ।
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