Sunday, July 3, 2022

कपर्दिका (कौडी) भस्म के फायदे, उपयोग और गुणधर्म


" कपर्दिका (कौडी) भस्म के फायदे और बनाने की विधि "

" कपर्दिका ( कौडी ) कितने  प्रकार की होती हैं "


कपर्दिका ( कौडी ) तीन प्रकार की होती है ( सफेद, पीली और शोण ) । भस्म के लिए सिर्फ पीली कौडी प्रयोग में ली जाती हैं। पीली कौडी भी तीन प्रकार की होती हैं । पहली वजन में भारी डेढ़ तोले की होती हैं जिसे श्रेष्ठ माना जाता हैं, दूसरी मध्यम वजन की जो लगभग एक तोले की होती हैं और तीसरी हल्की और पौन तोले की होती हैं । 


" कपर्दिका ( कौडी ) शुद्धिकरण विधि "


कपर्दिका ( कौडी ) को शुद्ध करने के लिए छांछ, आंबीलोना रस या नीम्बू के रस में आठ दिन तक भिगोना होता हैं। कपर्दिका ( कौडी ) को सफेद हो जाने तक इसको अम्ल पदार्थों की भावना दी जाती हैं, और इसको धोकर शुद्ध कर लिया जाता है ।


" कपर्दिका ( कौडी ) भस्म बनाने की विधि "


>> पहली विधि - शुद्ध की हुई कपर्दिका ( कौडी ) को गजपुट दी जाती है, जिससे वह और भी सफेद हो जाती है। फिर इसका चूर्ण बना लिया जाता हैं, और भस्म तैयार ।


>> दूसरी विधि - शुद्ध कपर्दिका ( कौडी ) को गजपुट देने के बाद चूर्ण बनाकर घीगुवार के रस में और नीम्बू के रस में सात बार भावना दी जाती हैं। और हर भावना के बाद गजपुट देना चाहिए। इस विधि से भी अच्छी कपर्दिका ( कौडी ) भस्म तैयार होती हैं । कपर्दिका ( कौडी ) भस्म तैयार होने के बाद इसका रंग बिलकुल सफेद हो जाता है ।


 " कपर्दिका ( कौडी ) के फायदे और उपयोग "


कपर्दिका ( कौडी ) भस्म एक चूने का सेन्द्रिय कल्प है और सेन्द्रिय होने के कारण निरिन्द्रिय द्रव्यों से जल्द और आसानी से शरीर में मिल जाती है ।


" कपर्दिका ( कौडी ) का पेट रोगो में उपयोग "


कोष्टगत वात की वृद्धी के कारण पेट फूलना, पेट दर्द, शूल, खाना खानें के बाद एक ही जगह पर अटका रहना, कभी सूखी कभी खट्टी डकारे आना, जी मिचलाना, कभी वातकारक और अजीर्ण जैसी समस्याए हो जाती है । इन समस्याओ में कपर्दिका ( कौडी ) भस्म फायदेमंद होती हैं ।


उपरोक्त रोगो में कै ( उल्टी ) ज्यादा हो रही हो और हर उल्टी के साथ पेट अधिक फूलता हो और पेट का शूल भी अधिक हो तो कपर्दिका ( कौडी ) भस्म के साथ अनार पाक देने से उत्तम परिणाम मिलते हैं । 


रसाजीर्ण की आदत में भी कपर्दिका ( कौडी ) भस्म को एक अच्छा उपचार माना गया हैं ।


पुराने अग्निमांद्य  ( बदहज्मी ) या जीर्ण ज्वर और प्लीहा की  वृद्धि से हुए अग्निमांद्य में कौडी भस्म को घी के साथ देने से फायदा होता हैं ।


" वातपित्त में कपर्दिका ( कौडी ) भस्म का उपयोग "


वातपित्त विकार के कारण उत्पन्न हुआ शूल कपर्दिका ( कौडी ) भस्म से ठीक हो जाता हैं । कपर्दिका ( कौडी ) भस्म पित्त विकृति में फायदेमंद होती है।  


अन्नद्रवाख्य शूल में भी कपर्दिका ( कौडी ) भस्म लाभप्रद होती है । इस शूल में वातप्रकोप ( पेट फूलना और दर्द ) हो तो कपर्दिका ( कौडी ) भस्म के साथ शंखभस्म मिलाकर देने से उत्तम लाभ मिलता हैं । 


अम्लपित्त की प्रथम अवस्था में खट्टी और दर्द युक्त उल्टी होती है । इस अवस्था में कपर्दिका भस्म के साथ सुवर्णमाक्षिक भस्म देने से अच्छा फायदा मिलता हैं । 


" रसक्षय की प्रथम अवस्था में उपयोग "


रसक्षय की प्रथम अवस्था में कपर्दिका भस्म दी जाती हैं । थोड़ा खाने पर भी न पच पाना, मीठी डिकारें आना, बदबू आना और कब्जियत रहना इन लक्षणों में कपर्दिका ( कौडी ) भस्म से फायदा होता है ।


" रक्तपित्त और क्षतक्षय में उपयोग "


रक्तपित्त और क्षतक्षय के विकार में कौडी  भस्म के साथ प्रवालभस्म और सुवर्णगेरू इन तीनों का मिश्रण दिया जाता हैं । इसमें रहने वाला चूना अंश और माधुर्योत्पादक गुण से रक्त और रक्त वाहिनियों का स्तंभन होने खून आना रुक जाता है । 


" कर्ण विकार में कौडी भस्म का उपयोग "


कर्ण स्त्राव में जब स्राव गाढ़ा,  तीक्ष्ण और फुन्सियों वाला हो तो कपर्दिका भस्म दी जाती हैं, लेकिन सर्व प्रथम थोड़ी सी  कपर्दिका भस्म मीठे तेल के साथ कान में डाले और कुछ कपर्दिका भस्म दूध के साथ पीने से कर्ण स्त्राव में लाभ मिलता हैं ।


" चर्म विकार में कपर्दिका भस्म का उपयोग "


चमड़ी के जलने पर कपर्दिका भस्म, मुरदाडसिंग, सुवर्णगेरू, गिलोय सत्व, चंदन और बंसलोचन समान भाग लेकर इसमें अरंडी के तेल में अच्छी तरह से खरल करके मरहम तैयार करे, इस मरहम का जली हुई चमड़ी पर गाढ़ा लेप करे । जैसे ही लेप लगाया जाता है,  तुरंत आराम मिल जाता है और जलन बंद हो जाती है । और फोड़े होने की नौबत नहीं आती । 


" कपर्दिका ( कोड़ी ) भस्म के गुणधर्म " 


इसके गुणधर्म पित्तशामक,  पित्त की अम्लता को कम करना, कोष्ठस्थ वातनाशक और पाचक हैं ।


" कपर्दिका भस्म के कार्य "


कपर्दिका भस्म का व्यवहार यकृत्, प्लीहा, आमाशय और ग्रहणी इन अवयवों पर होने वाले विकारों पर होता है  


" कपर्दिका भस्म के दोष "


पित्तदोष, कपर्दिका भस्म लेने से कभी कभी मुंह में छाले पड़ जाते हैं, तब उसमें गिलोय का सत्व मिलाना चाहिए ।


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