Wednesday, July 13, 2022

जसदभस्म या पुष्पांजन भस्म के उपयोग और भस्म तैयार करने की विधि


" जसदभस्म या पुष्पांजन भस्म के उपयोग और भस्म तैयार करने की विधि "


जसदभस्म कितने प्रकार की होती हैं - जसदभस्म दो प्रकार की होती हैं - एक जसद और दूसरा शवक ।


" जसद को शुद्ध करने की विधि " 


जसद को चार प्रकार से शुद्ध किया जा सकता हैं , जैसे -


>> जसद को पानी में गरम करके, इस पानी को दूध में इक्कीस बार डालने से जसद शुद्ध होती है । 


>> जसद को गरम करके तेल, छांछ, गोमूत्र, कांजी और कुल्थी के काढे में सात बार डालकर जसद को शुद्ध किया जाता है ।


>> जसद को गरम करके विजोरा के रस में सात बार डालकर शुद्ध की जाती है । 


>> इंसान का मूत्र, घोड़े का मूत्र, छांछ या कांजी में जसद का पानी डालने से जसद शुद्ध होती है । 


" जसद भस्म तैयार करने की विधि " 


जसदभस्म को तीन प्रकार से तैयार किया जाता हैं । 


>> जसद के वजन का एक- चौथाई हिस्सा शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक लेकर उन दोनों को पहले घीक्वार के रस में और फिर नींबू के रस में खरल करके, इससे जसद के छोटे छोटे टुकड़ो पर लेप करे और शराव संपुट में डालकर गजपुट देने से जसद भस्म तैयार होती हैं ।


>> जसद के टुकड़े करके एक प्रहर तक अफीम या हींग के पानी में भिगोए । उसके बाद जसद को लोहे की कढ़ाई में गरम करे,  जब पिघल जाए तब लोहे के चम्मच से दो घंटे तक चलाए । और इस तरह जसदभस्म बन जाती हैं । 


>> जसद को गरम करने के बाद जब वह पिघल जाए,  तब उसमें मालकांगनी का पंचांग ( पत्ते , फूल , फल , मूल और छाल ) डालकर लोहे के चम्मच से अच्छी तरह चलाए । इससे पीले रंग की जसदभस्म बनती हैं । 


इन तीनों विधि से तैयार की गई भस्म को सेन्द्रियत्व प्राप्त कराने के लिए इसे नींबू के रस में, हल्दीके काढ़े में और घीक्वार के रस में, प्रत्येक में चौदह बार भावना दी जाती हैं । और हर भावना के बाद अग्निपुट दी जाती हैं । और अग्निपुट के बाद अच्छी तरह खरल में मर्दन की जाती हैं ।


" जसदभस्म का परिक्षण "


जसदभस्म अच्छी बनी हैं या नहीं इसके परीक्षण के लिए इसमें नींबू का रस डालने पर उसमे किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है और उसके रंग में किसी प्रकार का बदलाव नही होता है, तो यह अच्छी भस्म है। जसदभस्म अच्छी तरह खरल हुई हैं या नहीं यह जानने के लिए भस्म पानी में डाले, यदि वह पानी पर तैरता हैं, तो अच्छी भस्म है । 


" जसदभस्म के फायदे और उपयोग "


जसदभस्म शीतल होती है, और कफपित्त नाशक व आँखों  लिए लाभप्रद होती है । यह मधुमेह, पांडुरोग, श्वास जैसे विकारों को जल्दी ठीक कर देती है । सर्वांग ज्वर में जब शरीर में जलन हो और क्षय की प्रारंभिक अवस्था में जब हल्का ज्वर हो तो जसदभस्म उसे कम कर देती है । 


रसवाहिनी और रसवहपिंड के विकारों में जसदभस्म उत्कृष्ट औषधि है । गलारोग, गंडमाला, अपच और आंतों की सूजन में भी जसदभस्म फायदेमंद होती है ।


नाड़ीव्रण, भगंदर, दुप्टव्रण जैसे विकारों में भी जसदभस्म औषधि फायदेमंद होती हैं ।


" आंत्र विकार व अतिसार में जसदभस्म का उपयोग "


आंतो की सूजन से एक तरह का अतिसार ( दस्त ) होता है । इसमें उल्टी, पेट में तीव्र दर्द और रोगी क्षीण हो जाता है । आंत्रशोथ ज्वर में जीभ पर बड़े-बड़े छाले हो जाते है और कभी-कभी जीभ की अंतस्त्वचा बाहर निकल जाती है । इसे जसदभस्म ठीक कर देती हैं। 


" गले के विकार में जसदभस्म का उपयोग "


गले में गांठ की सूजन यदि  वह पुरानी हो या अन्य पुराने कंठ रोग हो  इनमें जसदभस्म उत्तम उपचार है । 


वलय, वृंद, बलाश इन विकारो में यदि जसदभस्म से फायदा न हो, तो भी स्वरघ्न, विदारिका, गिलायु, अधिजिव्ह, उपजिव्ह आदि विकार कम हो जाते है । यदि ये विकार उपदंश रोग के कारण हो तो जसदभस्म नही दी जाती । यदि क्षयजन्य, कफजन्य या रसवह पिंड के बिगड़ने से हुए हो तो जसदभस्म से ठीक हो जाते हैं ।


" नेत्र विकार में जसदभस्म का उपयोग "


आधा तोला शतधोतघृत या गाय का ताजा मक्खन और एक रत्ती जसदभस्म को अच्छी तरह खरल करके उसका अंजन बनाकर इसे दिन में दो से तीन बार आंख में डालने से कनीनी के पास के और पलको के अंदर के वर्ण ठीक हो जाते है । और पोथकी, अभिष्यंद, वर्त्म, शुंडिका जैसे नेत्र विकार भी ठीक हो जाते है । 


" जसदभस्म का क्षय विकार में उपयोग "


क्षयरोग की एक विशिष्ट अवस्था में भी जसदभस्म से फायदा होता है । रोगी को लगता है कि फेफड़ो का कुछ भाग नष्ट हो गया हैं । क्षयरोग विषार पूरे शरीर मे फैल जाता है और खून बिगड़ जाता है । जिससे तीव्र ज्वर उत्पन्न होता है, सुबह पसीना आता है, और बिलकुल भी ताकत नही रहती । इस अवस्था में जसदभस्म के साथ शिलाजीत देने से क्षयरोग का विषार बनना बंद हो जाता है, इससे रोगी को आराम मिल जाता है ।


" प्रमेह विकार में जसदभस्म का उपयोग "


पूरे शरीर में ताप का अंदेशा हो, हाथ-पैरों और शरीर में जलन हो, बाहर से शरीर ठंडा हो , प्यास बहुत लगती है लेकिन थोड़ा ही पानी पी पाता हो, मानो शरीर में गरम सूइयाॅ चुभ रही हो, जीभ में कड़वाहट और सूखी हो, गले मे गांठ जैसा दर्द हो, किसी काम में मन नही लगता  हो, शुगर लेवल कम होने से थकावट हो, सिर में चक्कर आना, स्मृतिनाश, सोचने की शक्ति कमी , ये सभी लक्षण पित्तजन्य प्रमेह विकार के होते हैं और पित्तजन्य प्रमेह छ प्रकार के होते है : - क्षार, नील, काल, पीत ( हारिद्र ), रक्त और विस्त्र ( मांजिष्ट ), इन सभी प्रकार के प्रमेह में जसदभस्म उत्तम फायदेमंद होती हैं ।


" मधुमेह विकार में जसदभस्म का उपयोग "


प्रमेह विकार का  इलाज यदि समय पर नही हुआ तो यह मधुमेह के उत्पन्न का कारण बन सकता है। जब शरीर में इन्शूलिन हार्मोन की कमी होने लगती तो रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और उसका पचन नही हो पाता । जसदभस्म मधुमेह में भी अच्छा काम करती हैं ।


" जसदभस्म का पांडुरोग में उपयोग "


पांडुरोग में हाथ-पैरों की जलन और रसवाहिनियों का विकार हो तो पित्तदोष को जसदभस्म दूर करने में मदद करती हैं । 


" श्वास रोग में जसदभस्म का उपयोग "


यदि गले की गांठ और पेट की गांठ होने से श्वास की बीमारी बढ़ गयी हो, और श्वास और इस गांठ में कोई संबंध हो तो जसदभस्म से फायदा होता हैं । 


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