सिस्टस ( CISTUS ) के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग और फायदों का विश्लेषण
● पुरानी ज़ुकाम में नाक खाली होने से जलन
● अंगो में ठंड लगना
● घी, मांस और नमक से परहेज, पनीर में रुचि
● शीत से रोग में वृद्धि तथा गर्मी से आराम
● कण्ठमाला ग्रस्त धातु
● अंगुलियों में एग्जीमा
सिस्टस की प्रकृति - गर्मी और श्लेष्मा निकलने से रोग में कमी आती हैं। ठंडी हवा से, मानसिक उत्तेजना से और शाम के समय रोग में वृद्धि होती हैं ।
" पुरानी ज़ुकाम में नाक खाली होने से जलन "
यह औषधि पुराने जुकाम में ज्यादा असरकारक होती हैं । यदि नये जुकाम में भी लक्षण मिलते हैं, तो फायदा करती हैं।
जुकाम में जब नाक में गाढ़ा पीला श्लेष्मा भरा होता है, और जब इसे बाहर निकाल दिया जाता है, तब खाली नाक में जलन होती हैं । और फिर से जब नाक में श्लेष्मा भर जाता हैं, तो आराम मिलता हैं । खाली नाक में जब रोगी सांस लेता है तो उसे तकलीफ होती है । यह तकलीफ ठंडी हवा के कारण होती हैं ।
" अंगो में ठंड लगना "
रोगी को भिन्न-भिन्न अंगों में ठंड की अनुभूूति होती है। ठंड इस औषधि का मुख्य लक्षण हैं । मस्तिष्क, जीभ, गले, श्वास - नलिका, पेट, छाती, अंगुलियों और पैरो में ठंड के लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता हैं।
" घी, मांस और नमक से परहेज, पनीर में रुचि "
पुरानी जुकाम में रोगी को यदि पनीर खाने की तीव्र इच्छा हो और घी, मांस तथा नमक से दूरी रखता हो, तो यह औषधि चमत्कारी असर करती हैं ।
" शीत से रोग में वृद्धि तथा गर्मी से आराम "
इस औषधि के रोगी को शीत में अत्यन्त कष्ट होता है, और गर्मी से आराम मिलता हैं । नाक की सर्दी में रोगी गर्म हवा अन्दर लेना चाहता हैं । रोगी की त्वचा ठंडी नहीं होती लेकिन भीतर से अधिक ठंड महसूस करता हैं ।
" कण्ठमाला ग्रस्त धातु "
कंठमाला ग्रस्त धातु का शरीर कैलकेरिया कार्ब की तरह सिस्टस में भी होता है । शरीर की गिल्टियां दोनों औषधियों में बढ़ती हैं । दोनों में सर्दी से तकलीफ होती हैं । दोनों में क्षय रोग की भावना होती हैं । दोनों में परिश्रम से थकान होती हैं, सांस फूलने लगती हैं और पसीना आता हैं । ये सभी लक्षण दोनों औषधियों में होते हैं । कंठमाला - ग्रस्त रोगी के लिए औषधि का निर्वाचन करते हुए इन दोनों औषधियों को ध्यान में रखा जाता हैं ।
" अंगुलियों में एग्जीमा "
सर्दी से हाथ की अंगुलियाँ फट जाती हैं, ठंडे पानी से हाथ धोने से अंगुलियों मे छिलकेदार ज़ख्म हो जाते हैं, खून तक निकल आता हैं । इन लक्षणों में इस औषधि से अच्छा लाभ होता हैं ।
" सिस्टस की शक्ति तथा प्रकृति "
यह औषधि दीर्घ - क्रिया करने वाली हैं । सोरा दोष से दूषित, कठमाला ग्रस्त धातु के शरीर में लाभप्रद हैं । यह शीत प्रकृति की औषधि हैं ।
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