Thursday, September 22, 2022

नागभस्म के उपयोग, शुद्धिकरण और बनाने की विधि


 नागभस्म के उपयोग, शुद्धिकरण और बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन :-


सीसा दो प्रकार का होता है - कुमार और शुमल । भस्म बनाने के लिए कुमार सीसे का प्रयोग होता हैं।


" सीसा शुद्धिकरण विधि "


>> त्रिफला का काढ़ा, धीक्वार का रस या कण्हेरी के पत्तों का रस लोहे की कढ़ाई में डालकर, उसमें अग्नि में तपा हुआ सीसा सात बार डालने से सीसा शुद्ध होता है और हर बार नया रस इस्तेमाल होता हैं ।


>> तेल, छांछ, गोमूत्र, कांजी या कुल्थी के काढ़े में सीसे का पानी सात बार डालने से सीसा शुद्ध होता है ।


" नागभस्म बनाने की सम्पूर्ण विधि "


>> शुद्ध मनसील को अडूसे के रस में खरल करके इसका शुद्ध किए हुए सीसे के पत्तो पर लेप होता हैं । और फिर तीन बार कुंभपुट देने से सीसे की भस्म तैयार हो जाती हैं ।


>> शुद्ध मनसील को नागरबेल के पत्तों के रस में खरल करके शुद्ध किए हुए सीसे के पत्तों पर लेप होता हैं । इन पत्तो को मिट्टी के सराव में डालकर दूसरे सराव से ढककर मिट्टी में सने  हुए कपड़े में लपेटकर 32 बार लघुपुट दिया जाता हैं । जिससे सीसे की निरुत्थ भस्म बनती है ।


>> शुद्ध मनसील को आंक के रस में डालकर, इसका शुद्ध सीसे के पत्तों पर लेप कर लघुपुट दिया जाता हैं । और जब तक भस्म न बन जाए तबतक यह पुट जारी रखी जाती हैं ।


>> ओंगा, कौहा और पीपल की छाल की राख बनाकर, इस राख के समान सीसा ले । लोहे की कढ़ाई में सीसे का पानी बनाकर उसमें थोड़ी-थोड़ी राख डालकर पलाश के डंडे से घोंटा जाता हैं ।  यह प्रक्रिया सात दिन तक करने से सीसे की भस्म बन जाती है । 


" नागभस्म के फायदे "


नागभस्म एक शक्ति वर्धक रसायन है । इसके उपयोग से रसधातु और शुक्र धातु में वृद्धि होती  है ।


" अम्लपित्त में नागभस्म का उपयोग "


आमाशय के बढ़ जाने से अम्लपित्त की समस्या उत्पन्न होती है। सुबह के समय पेट और गले में जलन होती है, प्यास लगती है और उल्टी करने की इच्छा होती हैं। ये सब अम्लपित्त के कारण होता है। यदि अंतःपरिमार्जन करने बाद नागभस्म दी जाए तो तुरन्त फायदा होता हैं । 


नागभस्म आमाशय के संकुचन में मदद करती है। आमाशय के वरण और उसके कारण उत्पन्न अम्लपित्त में नागभस्म अच्छा फायदा करती है। यदि रोग पुराना हो और रोगी अशक्त और दुबला-पतला हो तो नागभस्म उत्तम औषधि हैं । 


" गंडमाला में नागभस्म का उपयोग "


गंडमाला एक प्राकृतिक विकार है, इस विकार में कभी-कभी शरीर की सभी धातुए क्षीण हो जाती हैं । और शरीर केवल हड्डी और चमड़ी का ढांचा रह जाता है । इस अवस्था में सबसे उत्तम इलाज सिर्फ नागभस्म ही है । नागभस्म के उपयोग से कुछ ही दिनों में ग्रंथियो की कठोरता कम हो जाती है और शरीर में धातुओं निर्माण होने लगता है । 


" प्राकृतिक वात विकार में नागभस्म का उपयोग "


प्राकृतिक रोग शरीर को बहुत दिनों तक तकलीफ देते रहते हैं । कुछ दिन कम होते है और कुछ दिन बाद फिर बढ़ जाते हैं । कुछ प्राकृतिक विकार तो बिलकुल खत्म लगते है, लेकिन थोड़ा सा कुपथ्य होते ही फिर बढ़ जाते है । जैसे मधुमेह, गंडमाला, क्षयरोग आदि प्राकृतिक विकारों में नागभस्म देने से फायदा होता है । 


" मधुमेह में नागभस्म का उपयोग "


मधुमेह विकार शरीर, दोष और धातुओं की विकृति से उत्पन्न होता है । आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह में तीन दोष, शुक्र, मेद, मांस, रक्त, अप्धातु, ओज, वसा, लसीका, मज्जा, रसधातु इत्यादि सभी विकृत होते है । और उनकी एक-दूसरे पर निर्भरता के कारण मधुमेह उत्पन्न होता है । 


मधुमेह के रोगी स्थूल और कृश दो प्रकार के होते है । स्थूल प्रकार के रोगी में मेद धातु की विकृति पाई जाती है। इनका शरीर हष्ट-पुष्ट होने पर भी ताकत की कमी होती है । इस प्रकार के रोगी को नागभस्म से फायदा होता हैं । कृश प्रकार का रोगी हो और साथ ही पेट में जलन हो तो जसदभस्म से फायदा होता हैं ।


" कोष्टशूल में नागभस्म का उपयोग "


इस प्रकार के कोष्टशूल में आंतो में शिथिलता होती हैं, और वातप्रधान या वातपित्तप्रधान विकृति रहती है । जिससे आंते ठीक तरह से काम नही करती, कभी-कभी उल्टी होती हैं । नाग भस्म देने से यह विकार दूर हो जाता है ।


" बद्धकोष्ट में नागभस्म का उपयोग "


बद्धकोष्ट ( कब्जियत ) पेट ठीक तरह से साफ नही हो पाता । पेट साफ न होने की समस्या आंतो की अशक्तता के कारण होता हैं । बद्धकोष्ट में नागभस्म उत्तम औषधि हैं ।


" अस्थि विकार में नागभस्म का उपयोग "


हड्डियों के अस्थिगत व्रण में नागभस्म दी जाती है । अस्थिधातु की वृद्धी के लिए जिन द्रव्यों की जरूरत होती है, उन्हे आंतों से लेकर अस्थिधातु तक पहुंचाने का कार्य नाग भस्म करती है । ये द्रव्य पार्थिव या निरिन्द्रिय घटकों से तैयार होते है । 


दोषों की दुष्टि, अस्थि और मज्जा धातुओं में होती हैं, तो हड्डियाँ क्षीण और मुलायम हो जाती हैं । हड्डियों में सूजन और कठिणता आ जाती है । हाथ-पैरों के जोडों के पास अस्थि बढ़ जाती है, जिससे तीव्र शूल होता है । बुखार, उल्टी और बेचैनी के लक्षण रहते है । यह विकार कभी-कभी गर्भिणी को और कभी कभी प्रसव के बाद भी तकलीफ देता है । आयुर्वेद के अनुसार यह अस्थिमज्जागत वातप्रकोप है । इसमे नागभस्म को आमला, गोखरू और मिश्री के चूर्ण के साथ देने से तुरन्त फायदा होता है । 


" बवासीर में नागभस्म का उपयोग "


इस प्रकार के बवासीर में गुदा के किनारे में सूजन रहती है और अंदरूनी भाग बाहर निकला रहता हैं । मस्से बिलकुल मुलायम होते है, और खून आने की तकलीफ नही रहती । लेट्रीन कृत्रिम तरीके से कराना पड़ता है । इस प्रकार की अशक्तता मे नागभस्म दी जाती हैं । इस तरह की अशक्तता अधिक शुक्रपात करने से भी हो जाती है । 


" पित्तज गुल्म में नागभस्म का उपयोग "


पित्तज गुल्म में ताकद बढाने के लिए नागभस्म का प्रयोग किया जाता है । पित्तजगुल्म की प्रारंभिक अवस्था में नागभस्म देने से इसका बढ़ना बंद हो जाता है और वही अवस्था लगातार बनी रहती है । पित्तजगुल्म का उपचार रोग को पुराना होने पर करना चाहिए, तभी उचित इलाज हो पाता हैं ।


" ग्रहणी व अतिसार विकार में उपयोग "


ग्रहणी व अतिसार विकार को ठीक करने के लिए शरीर में ताकत नहीं रहती है । इस कारण रोग लम्बा बना रहता है और शरीर अधिक क्षीण होता रहता है । इस विकार में ज्वर न हो तो नागभस्म से फायदा मिलता हैं ।


" नपुंसकता में नागभस्म का उपयोग "


मधुमेह के कारण उत्पन्न नपुंसकता में नागभस्म फायदेमंद होती हैं । अंडकोशो की ग्रंथियो की अशक्तता के कारण उत्पन्न नपुंसकत्व में नागभस्म के साथ सिलाजीत, सुवर्णभस्म देने से अच्छा लाभ मिलता हैं । 


" पांडुरोग में नागभस्म का उपयोग "


धातु परिपुष्ट क्रिया में कमी आने कारण सर्व इंद्रियों और हृदय में अशक्तता होने लगती हैं, जिससे पाण्डुरोग का उपद्रव होने लगता हैं, तो अभ्रक भस्म या लोहभस्म के साथ नागभस्म देने से फायदा होता हैं ।


" पक्षाघात में नागभस्म का प्रयोग "


पुराने पक्षाघात ( लकवा ) के विकार में, विशेषतया शाखाश्रित सिरा, स्नायु या कण्डरा की अशक्तता हो और हाथ पैरों में विशेषतया अंगुलियों मे कुछ भी उठाने की शक्ती न हो तो नागभस्म से फायदा मिलता हैं । 


" खांसी में नागभस्म का उपयोग " 


हृदय की अशक्तता के कारण या फेफडों की अशक्तता के कारण एक प्रकार की खांसी होती है । इसमें बडी तकलीफ होती है और खांसी करते वक्त आवाज निकलती हैं । कफ बिलकुल भी नही होता लेकिन खांसी बराबर चलती रहती है । इस अवस्था में नागभस्म से आराम मिलता हैं ।


" मांसार्बुद विकार में नागभस्म का उपयोग "


मांसार्बुद ( कैंसर ) विकार में नागभस्म का प्रयोग करने से,  विशेषतया वातप्रधान रोग हो और शूल अधिक हो तो नागभस्म देने से कुछ आराम मिलता हैं ।


" नागभस्म के प्रयोग पर सावधानी "


नागभस्म के उपयोग से कभी-कभी कोष्टशूल पैदा हो सकता है 


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