आर्सेनिकम ऐल्बम ( ARSENICUM ALBUM ) औषधि के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग व फायदों का विस्तार पूर्वक वर्णन-
- बैचेनी, घबराहट, मृत्यु भय और बेहद कमज़ोरी
- मृत्यु के समय की बैचेनी में आर्सेनिकम ऐल्बम शांत मृत्यु लाती हैं या मृत्यु से बचा लेते हैं
- जलन में गर्मी से आराम
- बार - बार व थोड़ी - थोड़ी प्यास लगना
- बाह्य त्वचा, अल्सर तथा गेंग्रीन पर आर्सेनिकम ऐल्बम का प्रभाव
- श्लैष्मिक झिल्ली पर आर्सेनिकम ऐल्बम का प्रभाव ( आँख, नाक, मुख, गला, पेट, मूत्राशय से जलने वाला स्राव )
- समयानन्तर व पर्याय क्रम के रोग
- रात्रिकालीन या दोपहर के बाद रोग का बढ़ना
- सफाई पसन्द स्वभाव
" आर्सेनिकम ऐल्बम की प्रकृति "
गर्मी से, गर्म पेय से, गर्म भोजन इच्छा, दमे में सीधा बैठने से रोग के लक्षणों में कमी आती हैं। जबकि ठंड, बर्फ, ठंडा पेय, ठंडा भोजन नापसन्द, दोपहर व मध्यरात्रि को रोग बढ़ना, 14 दिन बाद या साल भर बाद रोग का फिर से आक्रमण, अवरुद्ध स्राव या दाने और बरसात के मौसम में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती हैं।
" बैचेनी, घबराहट, मृत्यु भय और बेहद कमज़ोरी "
बेचैनी इसका मुख्य लक्षण हैं । उसे कही पर भी चैन व आराम नहीं मिलता । रोगी कभी यहाँ बैठता है, कभी वहाँ । कभी यहाँ लेटता है, कभी वहाँ, कभी इस कुर्सी पर बैठता है, कभी दूसरी पर । इस प्रकार की बैचेनी में यह दवा उत्तम हैं । रोग की शुरुआत में जो बेचैनी होती हैं, उसमे एकोनाइट दे सकते हैं, परन्तु जब रोग जब बढ़ जाता है तब बैचेनी के लिये यह औषधि अधिक उपयुक्त होती हैं ।
इस बैचेनी में रोगी घबरा जाता है, कि उसे मृत्यु का भय लगने लगता हैं । रोगी लगातार कमजोर होता जाता हैं। इस कमज़ोरी के कारण रोगी अब चल फिर भी नहीं सकता। जब कमज़ोरी बैचेनी का परिणाम हो, तब पूर्व बैचेनी और वर्तमान कमज़ोरी के लक्षणों के आधार पर आर्सेनिक ऐल्बम दी जाती हैं ।
बच्चों की बेचैनी में देखना चाहिए कि बच्चा कभी माँ की गोद में जाता हैं, कभी नर्स की गोद में, कभी बिस्तर पर, किसी हालत में उसे चैन नही पड़ता, तो आर्सेनिकम ऐल्बम ही उसे ठीक कर सकती हैं ।
" बैचेनी में एकोनाइट और आर्सेनिकम ऐल्बम की तुलना "
एकोनाइट का रोगी बलिष्ठ और तन्दुरुस्त होता हैं। उसको अचानक रोग होता हैं, और उसे भी मौत भय रहता हैं, परन्तु वह शीघ्र ही दवा के प्रयोग से ठीक हो जाता हैं। आर्सेनिकम ऐल्बम का रोगी मौत के मुख से निकल भी आया तो भी उसे पूरी तरह स्वस्थ होने में देर लगती हैं । रोग की प्रथमावस्था में एकोनाइट के लक्षण होते हैं, रोग की भयंकर अवस्था में आर्सेनिकम ऐल्बम के लक्षण होते हैं।
" मृत्यु के समय की बैचेनी में आर्सेनिकम ऐल्बम शांत मृत्यु लाती हैं या मृत्यु से बचा लेते हैं "
मृत्यु सिर पर खड़ी होने पर सारा शरीर निश्चल हो जाता हैं, शरीर पर ठंडा पड़ जाता हैं और चिपचिपा पसीना आ जाता हैं । ऐसा हैजा या किसी भी अन्य रोग में भी हो सकता हैं । इस समय दो ही रास्ते होते हैं, या तो रोगी की शांति से मर जाए, या वह मौत के मुख से बाहर निकल आए ।
ऐसे में होम्योपैथी की दो दवाए आर्सेनिकम ऐल्बम और कार्बोवेज ठीक कर सकती हैं। ऐसे समय दोनों में से उपयुक्त दवा की उच्च - शक्ति की एक मात्रा या तो रोगी को मृत्यु के मुख से खींच लाती हैं, या उसे शान्तिपूर्वक मरने देती हैं ।
" जलन में गर्मी से आराम "
आर्सेनिकम ऐल्बम का यह विशेष लक्षण है कि जलन होने पर भी गर्मी से उसे आराम मिलता हैं । फेफड़े में जलन हो तो रोगी सेक करना चाहेगा, पेट में जलन हो तो वह गर्म चाय, गर्म दूध पसन्द करेगा, ज़ख्म में जलन हो तो गर्म पुलटिस लगवायेगा, बवासीर की जलन हो तो गर्म पानी से धोना चाहेगा । इसमें अपवाद मस्तिष्क की जलन है, उसमे वह ठंडे पानी से सिर धोना चाहता हैं । आर्सेनिकम ऐल्बम का रोगी सारा शरीर कम्बल से लपेटे रखता हैं, परन्तु सिर उसका ठंडी हवा चाहता हैं ।
आर्सेनिकम ऐल्बम का रोगी शीत प्रधान होता है , परन्तु शीत प्रधान होते हुए भी उसे जलन होती है, और जलन में उसे गर्मी से आराम मिलता हैं । यह इसका सर्वांगीण और व्यापक लक्षण हैं । सिर दर्द में उसे ठंडक से आराम मिलता हैं । यह सर्वांग और एकांग का परस्पर विरोध हैं । इस प्रकार ध्यान देना होगा कि अंगो के " विशिष्ट लक्षण ' का उस औषधि के उस अंग के विशिष्ट लक्षण से साम्य है या नहीं, और व्यक्ति के जो विशिष्ट लक्षण हैं उनका उस औषधि का उस व्यक्ति पर पाये जाने विशिष्ट लक्षणों से साम्य है या नहीं और जिन औषधियों में सर्वांग और एकाग के लक्षणों में विरोध है उसे ध्यान में रखते हुए सर्वांग के व्यापक लक्षणों को प्रधानता देनी चाहिए ।
मस्तिष्क की गर्मी को ठंडे पानी से आराम मिलता है, तो भी खोपड़ी की जलन, जो वाय के कारण होती है, उसे गर्मी से ही आराम मिलता हैं । वह खोपड़ी को कपड़े से लपेटे रखता हैं । जलन के साथ दर्द भी हो, अगर उसमे गर्म सेक से आराम मिले, तो आर्सेनिकम ऐल्बम अच्छी दवा हैं । यदि जलन के साथ सिर दर्द, आखो में दर्द, नाक में दर्द, गले में, पेट में, आतों, बवासीर के मस्सो में, मूत्राशय में, गर्भाशय में, डिम्ब कोष में, जननेन्द्रिय में, छाती में, स्तन में, हृदय में, मेरूदंड में, जख्म में, त्वचा में कही भी हो सकता हैं । ऐसा लगता हैं कि धमनियों में बहते रूधिर में आग लगी गई हो । ऐसे लक्षणों में अगर गर्मी से आराम मिलता हो तो आर्सेनिकम ऐल्बम ही सबसे उपयुक्त औषधि हैं ।
" बार - बार व थोड़ी - थोड़ी प्यास लगना "
इस औषधि में बार - बार व थोड़ी - थोड़ी प्यास लगना इसका खास लक्षण हैं, परन्तु इस प्यास की एक विशेषता हैं । रोगी बार बार पानी पीता हैं और थोड़ा- थोड़ा पीता हैं । प्राय देखा जाता हैं कि रोग में एक अवस्था आगे चल कर दूसरी विरोधी अवस्था में बदल जाती हैं । प्रारंभ में प्यास, और रोग के बढ जाने पर प्यास की कमी आर्सेनिकम ऐल्बम का ही लक्षण हैं ।
" बाह्य त्वचा, अल्सर तथा गेंग्रीन पर आर्सेनिकम ऐल्बम का प्रभाव "
आर्सेनिकम ऐल्बम के रोगी की त्वचा सूखी, मछली के छिलके के समान होती है, उसमें जलन होती है । फोडे - फुंसियां आग की तरह जलती हैं । सिफिलिस के अल्सर होते हैं जो बढ़ते चले जाते हैं, ठीक नहीं होते उनमें जलन और सडंन होने लगती हैं । अगर शोथ के बाद फोड़ा बन जाए और सड़ने लगे या गेंग्रीन बनने लगे तो यह औषधि बहुत लाभप्रद हैं ।
श्लैष्मिक झिल्ली पर आर्सेनिकम ऐल्बम का प्रभाव ( आँख, नाक, मुख, गला, पेट, मूत्राशय से जलने वाला स्राव ) - आर्सेनिकम ऐल्बम के रोगी का स्राव जहाँ लगता हैं, वहा जलन पैदा करता हैं। जैसे -
>> जुकाम में जलन - जिसे जुकाम से पानी बहता हो तो वो होठों पर लगने पर जलन पैदा कर देता हैं, नाक में भी जलन करता है, नाक छिल जाता है, अगर रोगी को गरम पानी से आराम मिले तभी यह दवा ले।
>> मुख के छालो में जलन - जब मुख में छाले पड़ जाए और उनमें जलन हो, और गरम पानी से लाभ हो तो इस औषधि का उपयोग करे ।
>> गले में टांसिलों में शोथ व जलन - गले मे जलन और शोथ के साथ गर्म पानी के सेक से आराम मिलने पर अन्य लक्षणों को ध्यान में रखते हुए यह दवा उपयोगी हैं ।
>> पेट में शोथ व जलन - पेट का अत्यंत नाजुक होना, एक चम्मच ठंडा पानी पीने से भी उल्टी हो जाना, गर्म पानी से थोड़ी देर के लिये आराम मिलना, पाचन प्रणाली में सूजन । जो भी खाए उल्टी कर दे और जलन होना, बाहर से गर्म सेक से आराम मिलना । रोगी इतना बेचैन हो जाता है कि टहलने फिरने से भी उसे चैन नही मिलता और अंत में इतना शिथिल हो जाता है कि वह बिलकुल भी चल-फिर नही सकता ।
>> मूत्राशय में शोथ व जलन - मूत्राशय में जबरदस्त शोथ हो, बार - बार पेशाब आता हो, मूत्र में रक्त मिला हो , रक्त के थक्के भी आ रहे हो । और साथ ही रोगी को शुरू में बेचैनी रही हो, घबराहट, मृत्यु - भय, बेहद कमजोरी हो और सेक से रोगी को आराम मिलता था, तब रोगी को आर्सेनिकम ऐल्बम दी जाती हैं।
" समयानन्तर व पर्याय क्रम के रोग "
रोग का समयानन्तर से प्रकट होना इस औषधि का विशिष्ट - लक्षण हैं । इसी कारण मलेरिया ज्वर में यह विशेष उपयोगी दवा हैं । जब हर दूसरे दिन, चौथे दिन, सातवें या पन्द्रहवें दिन ज्वर आता हैं । सिर - दर्द भी हर दूसरे दिन, हर तीसरे, चौथे, सातवें या चौदहवें दिन आता हैं । रोग जितना पुराना होता है उतना ही उसके आने का व्यवधान लम्बा होता हैं । अगर रोग नया है तो रोग की उत्पत्ति हर तीसरे या चौथे दिन होता है, अगर पुराना है तो सातवें दिन, अगर रोग सोरिक है तो चौदहवें और पंद्रहवे दिन । इस दृष्टि से मलेरिया में आर्सेनिकम ऐल्बम अधिक उपयुक्त दवी हैं ।
>> समयानन्तर का सिरदर्द - मलेरिया की तरह आर्सेनिकम ऐल्बम में ऐसा सिरदर्द होता है जो हर दो सप्ताह के बाद आता है । रोगी बेचैन रहता है, घबराता हैं । नए रोग में पानी बार - बार पीता है, लेकिन पुराने रोग में प्यास नहीं लगती, सिर पर ठंडा पानी डालने से आराम मिलता है और खुली हवा में घूमना चाहता है, मध्य रात्रि में एक से दो बजे तकलीफ होती है, कभी - कमी यह तकलीफ दोपहर के एक से दो बजे से सिरदर्द शुरू होकर सारी रात रहता हैं । समयानन्तर आने वाले इस सिरदर्द में अन्य लक्षणों को भी देखकर आर्सेनिकम ऐल्बम देना लाभकारी होता हैं।
" रात्रिकालीन या दोपहर के बाद रोग का बढ़ना "
आधी रात के बाद या दोपहर को एक से दो बजे के बाद रोग ( दमे ) का बढ़ना इसका चरित्रगत लक्षण हैं। बुखार, खांसी, हृदय की धड़कन किसी भी रोग में मध्य - रात्रि या दोपहर में रोग का बढ़ना आर्सेनिकम ऐल्बम का लक्षण हैं।
" सफाई पसन्द स्वभाव "
रोगी का स्वभाव सफाई पसंद होता है । वह गंदगी या अनियमितता को बर्दाश्त नहीं कर सकता । अगर उसे किसी बात से परेशानी है और जबतक वह परेशानी ठीक नही हो जाती तबतक परेशान रहता हैं ।
" आर्सेनिकम ऐल्बम औषधि के अन्य लक्षण "
>> हैजे का दस्त, डायरिया, डिसेंट्री - इस रोग मे कैम्फर, क्यूप्रम और वेरेट्रम ऐल्बम देना चाहिए । परन्तु इन तीनों के अलावा आर्सेनिकम ऐल्बम भी हैजे की अच्छी दवा हैं । पानी की तरह पतला दस्त, काला और दुर्गन्धयुक्त दस्त, बेचैनी, प्यास, मृत्यु - भय, कमजोरी आदि लक्षण होने पर यह औषधि उपयोगी हैं । आर्सेनिकम ऐल्बम के डायरिया और डिसेन्ट्री में घबराहट, दुर्गन्धयुक्त मल, बेचैनी और अत्यंत कमजोरी प्रधान लक्षण है । कमजोरी इतनी हो जाती है कि मूत्र और मल अपने आप निकल जाता हैं । ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि रोगी मृतप्राय हो जाता है, सिर्फ सांस चलती है । मल लगता हुआ, जलन के साथ निकलता है । डिसेन्ट्री में ऐंठन होती है, टट्टी जाने की इच्छा बनी रहती है, आंतों में, गुदा में अत्यंत बेचैनी अनुभव होती हैं, दर्द इतना होता है कि रोगी मृत्यु के अलावा कुछ नहीं सोच सकता ।
>> रक्तस्राव - आर्सेनिकम ऐल्बम रक्तस्राव की औषधि है । रक्तस्राव किसी भी अंग से हो सकता हैं । अगर इस रक्तस्राव का इलाज न हो, तो कुछ समय बाद यह गेंग्रीन में बदल जाता हैं। उल्टी मे और टट्टी में काला, थक्केदार रुधिर जाने लगता हैं । रक्तस्राव के कष्ट में रोगी बेचैनी की हालत में होता हैं और अत्यधिक क्षीण, दुर्बल दशा में पहुंच जाता है, इस दुर्बलता में उसे ठंडा पसीना आने लगता हैं। रक्तस्राव का ही एक रूप खूनी बवासीर है, इसमें रोगी के मस्सों में खुजली और जलन होती है, इस दशा में यह औषधि लाभप्रद होती हैं ।
>> ज्वर - ज्वर में शीत, ताप और स्वेद - ये तीन अवस्थाए होती हैं । आर्सेनिकम ऐल्बम के ज्वर में शीत अवस्था में प्यास नहीं लगती, ताप अवस्था में थोड़ी प्यास लगती है, स्वेद अवस्था में खूब प्यास लगती है, जितना पसीना आता है, उतनी ही प्यास बढ़ती जाती हैं । अगर समयानन्तर ज्वर हो ( मलेरिया ) तो इन लक्षणों में आर्सेनिकम ऐल्बम ज्वर को जल्दी ठीक कर देती हैं।
>> खांसी या श्वास कष्ट- खांसी आने के बाद श्वास कष्ट होने पर इस औषधि से लाभ होता है । खुश्क खांसी जिसमें रोगी थोड़ी - थोड़ी देर में खांसता हैं, जो ठीक होने में नही आती, न कफ बनता है, न निकलता है । ऐसी खांसी में आर्सेनिकम ऐल्बम से लाभ होता हैं ।
>> आर्सेनिकम ऐल्बम का रोगी शीत प्रधान होता है, वह गरम वातावरण चाहता हैं । हर समय गर्म कमरे मे रहना चाहता है ।
" आर्सेनिकम ऐल्बम की शक्ति व प्रकृति "
पेट, आंतो तथा गुर्दे की बीमारियों में निम्न शक्ति लाभ पहुँचाती है, स्नायु संबंधी बीमारियों तथा दर्द के रोगों में उच्च शक्ति लाभप्रद होती है । अगर सिर्फ त्वचा के बाह्य रोगों में 2x व 3x उपयुक्त होती हैं, जिसे दोहराया जा सकता हैं। दमे मे 30 शक्ति और पुरानी बीमारी में 200 शक्ति लाभदायक होती हैं । यह औषधि ' सर्द ' प्रकृति की हैं ।
0 Comments:
Post a Comment