एकोनाइट ( ACONITE ) के व्यापक - लक्षण, मुख्य - रोग, गुण और फ़ायदों को विस्तार से जानते है ।
- भय के कारण बीमारियाँ
- घबराहट तथा बेचैनी
- खुश्क - शीत के कारण यकायक रोग
- शीत से शोथ की प्रथमावस्या में एकाएकपन और प्रबलता
- जलन और उत्ताप
- अत्यन्त प्यास
- शीत द्वारा दर्द - स्नायु - शूल
" भय के कारण बीमारियाँ "
एकोनाइट का मुख्य तथा प्रबल लक्षण ' भय ' है । किसी भी रोग मे ' भय ' अथवा ' मृत्यु के भय ' के उपस्थित रहने पर एकोनाइट औषधि का प्रयोग आवश्यक है । मैटीरिया मैडिका की किसी अन्य औषधि मे भय का लक्षण इतना प्रधान नहीं है जितना इस औषधि में हैं । उदाहरणार्थ -
>> सड़क पार करने से भय लगना - इसका रोगी सड़क पार करते हुए डरता है कि कही मोटर की चपेट में न आ जाए । वैसे तो हर - कोई मोटर की चपेट मे आने से डरता है, परन्तु एकोनाइट का रोगी बहुत दूर से आती हुई मोटर से भी डर जाता है ।
>> भीड़ मे जाने से डरना - रोगी भीड़ मे जाने से, समाज मे जाने से डरता है और बाहर निकलने से डरता है ।
" मृत्यु की तारीख बताना "
इसके रोगी का चेहरा घबराया हुआ रहता है । रोगी अपने रोग से इतना घबरा जाता है कि जीवन की आशा छोड़ देता है । वह समझता है कि उसकी मृत्यु निश्चित है । कभी - कभी अपनी मृत्यु की तारीख की भविष्यवाणी कर देता है और डाक्टर से कहता है कि तुम्हारा इलाज व्यर्थ है , मैं शीघ्र ही अमुक तारीख को मर जाऊँगा। घड़ी को देख कर कहता है कि घड़ी की सूई अमुक स्थान पर आ जाएगी तब मैं मर जाऊँगा ।
>> प्रथम प्रसूति - काल के डर से लड़की का रोना - जब नव विवाहिता लड़की प्रथम बार गर्भवती होती है तब माँ को पकड़ कर रोती है और कहती है इतने बड़े बच्चे को कैसे जन्म दूँगी , मैं तो मर ही जाऊँगी । इस अवस्था में उसे एकोनाइट 200 की एक खुराक देने से ही उसका भय दूर हो जाता है और वह शांत हो जाती है ।
>> भय से किसी रोग का श्रीगणेश होना - जब किसी बीमारी का श्रीगणेश भय से हुआ हो तब एकोनाइट लाभप्रद होती है ।
>> भूत - प्रेत का डर – बच्चो में अकारण ही भूत प्रेत का भय होता है । अन्य कारणो से भी बच्चे , स्त्रियाँ तथा अनेक पुरूष अकारण भय से परेशान रहते हैं । इन अकारण भय में यह औषधि बहुत ही फायदेमंद है ।
" भय में एकोनाइट व अर्जेन्टम नाइट्रिकम से तुलना "
इन दोनों औषघियो मे प्रबल लक्षण मृत्यु भय होता है। दोनो के रोगी कभी - कभी अपनी मत्यु की भविष्यवाणी करता हैं। दोनो के रोगी भीड में जाने से डरते हैं, घर से निकलने से डरते है। अर्जेन्टम नाइट्रिकम की विशेषता यह है कि अगर उसे कुछ काम करना हो, तो उससे पहले ही उसका मन घबरा जाता है। किसी मित्र को मिलना हो, तो जब तक मिल नहीं लेता तब तक घबराया रहता है। गाड़ी पकड़ना हो तो जब तक गाड़ी पर चढ़ नही जाता तब तक परेशान रहता है।
अगर व्याख्यान देना हो तो घबराहट के कारण उसे दस्त आ जाता है, शरीर मे पसीना छूटने लगता है। आगामी आने वाली घटना को सोच कर घबराया हुआ रहना, उस कारण दस्त आ जाना, पसीना फूट पड़ना, उस कारण नींद न आना अर्जेन्टम नाइट्रिकम का विशेष लक्षण है ।
ऊँचे - ऊँचे मकानों को देख कर उसे चक्कर आ जाता है। एकोनाइट में ठंड से बचता है, अर्जेन्टम नाइट्रिकम में ठंड को पसंद करता है। अर्जेन्टम नाइट्रिकम ठंडी हवा, ठंडे पेय, बर्फ, आइस क्रीम पसन्द करता है। पल्सेटिला के लक्षण की तरह बन्द कमरे में जी घुटता है , एकोनाइट मे ऐसा नहीं होता। अर्जेन्टम नाइट्रिकम का भय पूर्व - कल्पित भय होता है और एकोनाइट का भय हर समय रहने वाला भय होता है।
" भय मे एकोनाइट तथा ओपियम की तुलना "
भय से किसी रोग का उत्पन्न होना एकोनाइट तथा ओपियम दोनो के लक्षण है , परन्तु भय से उत्पन्न रोग की प्रारंभिक अवस्था मे एकोनाइट लाभ करता है , परन्तु जब भय दूर न होकर हृदय मे जम जाए और रोगी अनुभव करे कि जब से मैं डर गया हूँ तब से यह रोग मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा, तब ओपियम अच्छा काम करती है । इस लक्षण के साथ ओपियम के अन्य लक्षणों को भी देख लेना चाहिये ।
" घबराहट तथा बेचैनी "
मृत्यु भय , भय और घबराहट , ये तीनो एक - दूसरे से क्रमश हल्के शब्द हैं । यह जरूरी नहीं कि रोगी में मृत्यु का भय ही हो, घबराहट में मृत्यु का भय अन्तर्निहित रहता है और यह मानसिक है । और इसी कारण घबराहट से बेचैनी होती है और यह शारीरिक होता है । इसकी तीन मुख्य औषधियाँ होती हैं जैसे- एकोनाइट , आर्सनिक तथा रसटॉक्स, इन्हें बेचैनी का त्रिक कहा जाता हैं ।
" बेचैनी मे एकोनाइट, आर्सनिक तथा रस टॉक्स की तुलना "
एकोनाइट का रोगी मानसिक घबराहट तथा शारीरिक बेचैनी के कारण बार - बार करवटें बदलता है, पर उसके शरीर मे पर्याप्त शक्ति बनी रहती है। वह कभी उठता है, कभी बैठता है, कभी लेट जाता है, किसी भी तरह उसे चैन नही मिलता। एकोनाइट के रोगी की बचैनी मन तथा शरीर दोनो मे रहती है और उसकी शारीरिक - शक्ति यथावत रहती हैं।
आर्सनिक के रोगी का शरीर कमजोर और शक्तिहीन होता है, उसकी मानसिक बेचैनी अधिक होती है जिसे घबराहट कहा जा सकता है। आर्सनिक का रोगी शारीरिक दृष्टि से कमजोर होने पर मानसिक - घबराहट तथा बेचैनी के कारण बिस्तर पर इधर - उधर करवटें बदलता है, एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर पर जाता है।
रस-टॉक्स के रोगी को शारीरिक कष्ट अधिक होता है, शरीर की मासपेशियो मे दर्द होता है और इसी कारण वह करवटें बदलता है और इस प्रकार उसे कुछ देर के लिये आराम मिलता है क्योंकि रस टॉक्स के लक्षणों मे हिलने - जुलने से आराम होता है। इस प्रकरण मे यह भी ध्यान रखना चाहिये कि बिस्तर सख्त मालूम होने के कारण बार - बार करवटें बदलते रहना और जिस तरफ भी लेटे उस तरफ बिस्तर सख्त मालूम होना आर्निका में पाया जाता है ।
" भय , क्रोध और अपमान से होने वाले रोगो में एकोनाइट , कैमोमिला तथा स्टैफि सैप्रिया में तुलना "
अगर शारीरिक अथवा मानसिक रोग का कारण ‘ भय ' हो तो एकोनाइट से लाभ मिलता है , अगर इसका कारण क्रोध हो तो कैमोमिला से लाभ होता है , अगर इसका कारण ' अपमान हो तो स्टैफिसैप्रिया से लाभ होता है । भय , क्रोध , अपमान में मनुष्य को मानसिक रोग साथ दस्त , पीलिया आदि शारीरिक रोग भी हो जाते हैं ।
" खुश्क - शीत के कारण बीमारियाँ होना "
शीत दो प्रकार हो की सकती है । नमी वाली हवा की शीत , और खुश्क हवा की शीत । सूखी ठंडी हवा के शीत से जो रोग उत्पन्न होते हैं , उन सब मे एकोनाइट लाभप्रद होती है । नमी वाली ठंडी हवा के शीत से जो रोग उत्पन्न होते हैं उनमें रसटॉक्स और नेट्रमसल्फ़ औषधि लाभप्रद होती है । जिन व्यक्तियों को खुश्क - शीत के रोग आसानी से हो जाते है। इस विषय मे अनुभव बतलाता है कि मोटे - ताजे , रक्त - प्रधान बच्चों तथा व्यक्तियों को खुश्क - शीत के रोग आसानी से हो जाते है जबकि दुबले - पतले बच्चों को ये रोग धीरे - धीरे होते है ।
>> मोटे - ताजे तथा दुबले - पतले बच्चों पर क्रुप खाँसी मे खुश्क शीत का आक्रमण - अगर एक ही परिवार के दो बच्चो को , जिनमे एक मोटा - ताजा और दूसरा दुबला - पतला हो और उनकों खुश्क - शीत में ले जाया जाए , तो मोटा - ताज़ा , तगड़ा बच्चा सर्दी में क्रुप खाँसी का शिकार हो जाता है , जबकि दूसरा दुबला - पतला बच्चा एक - दो दिन बाद क्रुप खाँसी की पकड़ में आता है । यह एकोनाइट का लक्षण है , और जिस कमजोर बच्चे को पहली रात ही शीत का कोई अन्य रोग नही हुआ तो वह हिपर का रोगी है ।
>> मोटे - ताजे तथा दुबले - पतले लोगों पर जुकाम मे खुश्क शीत का आक्रमण - अगर मोटा - ताजा व्यक्ति हल्के कपड़े पहन कर बाहर जाने से खुश्क - शीत से पीड़ित होगा , तो उसे उसी रात को जुकाम हो जायगा , अगर कोई व्यक्ति गर्म कोट पहन कर सर्दी मे निकलने से पसीना आने पर सर्दी हो जाएगी और कुछ दिन बाद जुकाम होगी । पहले व्यक्ति को मोटा - ताजा होने पर सर्दी आकर जुकाम होने पर एकोनाइट दिया जाता हैं , दूसरे व्यक्ति को ठंड लगने के कुछ दिन बाद जुकाम होने के कारण कार्बोवेज या सल्फर दिया जाता हैं।
>> शीत में गठिया रोग का आना - यह औषधि पुराने गठिया रोग मे तो काम नहीं करती , लेकिन शीत में ठंडी हवा के लगने से अगर जोडो मे दर्द, ज्वर या साथ बेचैनी हो तो एकोनाइट लामप्रद औषधि है ।
" शीत से शोथ की प्रथमावस्था में एकाएक प्रबलता "
एकोनाइट में शीत से रोग का होना एक प्रथम कारण है , इसलिये शीत जन्य रोगों मे इसका विशेष उपयोग होता है । शोध की प्रथमावस्था मे एकोनाइट तभी देना चाहिये जब शीत का एकाएक तथा प्रबल वेग से बड़ना शुरू हो । शोथ के अतिरिक्त यह भी प्राय कहा जाता है कि एकोनाइट ज्वर की दवा है । यह मी भ्रमात्मक विचार है । एकोनाइट उसी ज्वर मे दिया जाना चाहिये जो प्रबल वेग से आया हो । ऐसे ही शोथ में , ज्वर में तथा अन्य रोगों में यह औषधि लाभप्रद है ।
>> शीत से आंख की सूजन की प्रथमावस्था में - प्राय सर्दी लगने से आँख एकदम बंद और लाल हो जाती है । यह आँख की सूजन इतनी अचानक होती है कि समझ नही आता कि यह कैसे हो गई । इस सूजन में आँख से पानी निकलता है । इसी को शीत से सूजन की प्रथमावस्था कहा जाता है । सूजन की प्रथमावस्था के बाद सूजन की जो अगली अवस्थाएँ है जैसे मूजन, पस का पड़ना इस स्थिति मे एकोनाइट काम नहीं करती । आँख की मूजन मे एकाएकपन और प्रबलपन - ये एकोनाइट के मुख्य लक्षण माने गए हैं ।
>> शीत से ज्वर कि प्रथमावस्था मे - जो ज्वर धीमी गति से आये और लगातार बना रहे , तो यह औषधि उपयुक्त नही है । एकोनाइट का तो रूप ही प्रबल वेग से आना और उसी वेग से शान्त हो जाना है । इसलिये टाइफॉयडं जैसे ज्वरो मे यह औषधि उपयुक्त नहीं है । ज्वर को ठीक करने मे एकोनाइट का उपयोग एलोपैथ में भी किया जाता हैं । एकोनाइट उसी ज्वर मे उपयुक्त है जो शीत के कारण या पसीने के शीत से दब जाने के कारण एकदम आता है , एकोनाइटऐसी दवा है , जो एक रात मे ही ज्वर को ठीक कर देती हैं । बिना सोचे ज्वर मे एकोनाइट देने से कभी - कभी दुष्प्रभाव की सभावना भी रहती है । बीमार का इलाज करते हुए केवल इस बात पर ही ध्यान नहीं देना होता कि रोगी मे कौन - कौन - से लक्षण हैं , इस बात पर भी ध्यान देना होता है कि उसमे कौन - से लक्षण नहीं हैं । एकोनाइट के ज्वर मे एकाएकपन , अचानकपन तथा प्रबल वेग - ये सभी लक्षण हैं।
" ज्वर मे एकोनाइट तथा बैलेडोना की तुलना "
ज्वर मे एकोनाइट तथा बैलेडोना दोनो उपयुक्त औषधी है परन्तु कई चिकित्सक ज्वर मे एकोनाइट और बैलाडोना को क्रमश दोनों दे देते हैं , यह ठीक नहीं है । दोनो औषधियो की भिन्नता यह होती है कि दोनों में त्वचा में गर्मी का लक्षण एक - समान होता है , परन्तु बैलेडोना मे एकोनाइट की अपेक्षा बाहरी त्वचा की गर्मी अधिक होती है और ढके हुए अंगों पर पसीना आता है , जबकि एकोनाइट मे जिस तरफ रोगी लेटा होता है उधर ही पसीना आता है । एकोनाइट का रोगी बेचैनी में यह सोचता कि मैं मर जाऊंगा और बिस्तर मे इधर - उधर करवट बदलता रहता है , बैलेडोना के ज्वर में रोगी -अर्ध निंद्रा में पड़ा रहता है। एकोनाइट का रोगी थोडी - थोड़ी देर में अधिक पानी पीता है और बैलेडोना का थोड़ा -थोड़ा पीता हैं । एकोनाइट का रोगी शरीर को खुला रखना पसन्द करता है और बैलेडोना का शरीर को ढक कर रखना पसंद करता है।
>> शीत से कान के शोथ की प्रथमावस्था मे - सर्दी लगने मे कान का शोथ अचानक , एकदम तथा प्रबल वेग से होता है जिसमे एकोनाइट उपयुक्त औषधि मानी जाती है । जब कोई बाहर सर्दी मे गया है और उसके तन पर काफी कपडे कम पहने हो तब उसके कान मे तकलीफ होने लगती है । शाम तक कर्ण - शूल प्रारम्भ हो जाता है । अचानक और वेग इस शोथ के लक्षण हैं ।
>> शीत से एकाएक निमोनिया के प्रथम लक्षण मे - अगर रोगी को ठंड लगने से अचानक निमोनिया हो जाता है तो उसके चेहरे पर घबराहट और बेचैनी दिखाई देती है । रोगी महसूस करता है की अब वह बच नहीं सकता, मृत्यु भय और बेचैनी उसके चेहरे पर अंकित हो जाती है और छाती मे सूई के छेदन सा दर्द होने लगता है , लेट नही सकता , खासते ही खून निकलता है - ऐसे यकायक तथा प्रबल वेग के निमोनिया के पर एकोनाइट लाभदायक होती है ।
>> शीत से एकाएक प्लुरिसी के शुरुआती लक्षण में - फेफड़े को ढकने वाली झिल्ली की शोथ को प्लुरिसी कहते है । एकदम सर्दी लगने से इस झिल्ली का शोथ हो जाता है । एकाएक प्लुरिसी के शोथ मे छाती में दर्द होता है , ज्वर हो जाता है । इस प्रकार का वेग शुरुआती लक्षणों में एकोनाइट उपयोग होता है ।
>> शीत से पेट की एकाएक तकलीफ़ों मे - सर्दी लगने से या अत्यधिक ठंडे पानी में स्नान करने से अचानक पेट मे ज़ोर का दर्द हो सकता है । सर्दी के पेट मे बैठ जाने से भयकर दर्द , उल्टी , खून की कय आदि तकलीफ़े हो सकती हैं । उस समय रोगी कटु पदार्थ खाना पसंद करता है । पानी के सिवा उसे सब कडवा लगता है । इस प्रकार की पेट की असाधारण अवस्था में मुख्य कारण पेट मे शीत का बैठ जाना होता है । इस अवस्था के शुरुआती लक्षणों में एकोनाइट लाभदायक होती है ।
" जलन और उत्ताप "
एकोनाइट में ' जलन ' एक विशेष लक्षण है । हर प्रकार के दर्द में जलन होती है । जैसे सिर मे जलन , स्नायु - शिरा के मार्ग मे जलन , रीढ मे जलन , ज्वर मे जलन , कभी - कभी तो ऐसी जलन जैसे मिर्च की जलन हो ।
" अत्यन्त प्यास लगना "
एकोनाइट का रोगी कितना ही पानी पी ले उसकी प्यास नही बुझती । आर्सनिक का रोगी बार बार में थोडा - थोडा कर पानी पीता है , एकोनाइट का रोगी बार - बार , बहुत - सा पानी पी जाता है । एकोनाइट के जलन और प्यास के लक्षणो को ध्यान में रखते हुए इस औषधि के गले की सूजन व टांसिल के लक्षणों को विस्तार से जानते हैं ।
>> शीत से गले की सूजन ( टासिल ) मे जलन और प्यास - गले की सूजन या टांसिल बढ़ जाने पर निगलना कष्टप्रद हो जाता है , लेकिन इतने से हम किसी औषधि का निर्णय नही कर सकते । अगर रोगी रक्त - प्रधान हो , तन्दुरुस्त हो , ठंडी हवा में सैर किया हो , शीत - वायु में रहा हो और वह उसी दिन गले मे तीव्र जलन अनुभव करे , गले में थूक निगलने में दर्द अनुभव करे , तेज़ बुखार हो , ठंडा पानी पीये , घबराहट और बेचैनी महसूस करे , तब उसके लिए एकोनाइट लाभप्रद होगी।
" शीत से दर्द स्नायु शूल "
सिर दर्द तथा दांत दर्द में एकोनाइट उत्कृष्ट दवा माना गया है । इन सभी दर्द में भी इसके आधारभूत लक्षण सदा रहने चाहिये । शीत से स्नायु - शूल के लक्षणों निम्न उदाहरणों से समझते हैं-
>> शीत द्वारा स्नायु शूल - कोई व्यक्ति ठंडी सूखी हवा मे निकलता है । उसका चेहरा ठंडी हवा के सपर्क में आता है तो उसे स्नायु शूल हो जाती है , फिर हष्ट पुष्ट व्यक्ति को भी कहराने वाला दर्द शुरु हो जाता है । इस दर्द को एकोनाइट एकदम ठीक कर देती हैं ।
>> शीत से शियाटिका का दर्द - शीत लगने मे स्नायु मार्ग बर्फ जैसी ठंड अनुभव हो या जलन का अनुभव तो एकोनाइट अच्छा काम करती है ।
>> शीत से सिर दर्द - इसका दर्द बड़े वेग से आता है जिससे मस्तिष्क तथा खोपड़ी पर जलन होने लगती है, कभी बुखार आता है कभी नहीं आता। सर्दी लगने से सिर में दर्द होने लगता है और कभी - कभी जुकाम के बन्द हो जाने से दर्द शुरू हो जाता है । जुकाम के समय रक्त - प्रधान व्यक्ति शीत हवा में बाहर निकलता है तो थोडी देर में आँखो के ऊपरी भाग सिर में दर्द होने लगता है । इस सिर दर्द से घबराहट रहती है । स्त्रियो के मासिक धर्म के अचानक रूक जाने से सिर में खून का दौर बढ़ जाता है और सिर - दर्द हो जाता है । इन सभी दर्दो में एकोनाइट बहुत ही फायदेमंद हैं ।
>> शीत द्वारा दातो मे दर्द - दांत के दर्द को दूर करने के लिये यह बहुत ही प्रसिद्ध औषधि है। एकोनाइट के मदर टिंचर की एक बूंद रूई में लगाकर दांत की खोल में रखने से दर्द शान्त हो जाता है । अगर शक्तिकृत एकोनाइट का प्रयोग किया जाए तो वह और अच्छा काम करेगी , परन्तु यह ध्यान रखने की बात है कि दर्द सर्दी लगने से हुआ हो और एकदम व बड़े वेग से आया हो और रक्त - प्रधान व्यक्ति हो ।
" दर्द में एकोनाइट , कैमोमिला तया कॉफिया की तुलना "
होम्योपैथिक में एकोनाइट , कैमोमिला तथा कॉफ़िया दर्द की प्रमुख औषधिया हैं । कैमोमिला के दर्द में अत्यन्त चिडचिडापन होता है , कॉफिया के दर्द मे अत्यन्त उत्तेजना होती है और त्वचा स्पर्श को सहन नही करती और रोगी शोर को सहन नहीं कर सकता। एकोनाइट में रोगी को अत्यन्त घबराहट तथा मृत्यु का भय होता है ।
" एकोनाइट औषधि के अन्य लक्षण "
>> गर्मी से उत्पन्न रोगो में - यह औषधि का उपयोग शीत की बीमारियों में ही नही बल्कि अत्यन्त शीत व अत्यन्त गर्मी से उत्पन्न रोगो में भी किया जाता है । फेफड़े तथा मस्तिष्क रोग शोथ के कारण होते है और ' आन्त्र - शोथ ' तथा पेट के रोग ग्रीष्म काल में होते है । जब रक्त - प्रधान व्यक्ति एकदम गर्मी खा जाता हैं तब लू से सिर दर्द व गर्मी से पेट में दस्त आदि अनेक तकलीफ उत्पन्न हो जाते हैं । इनमें एकोनाइट लाभप्रद औषधि है । बच्चों के पेट की बीमारियाँ गर्मी की वजह से होती है और अचानक , प्रबल वेग आई हो तो एकोनाइट उपयोगी होती है ।
>> स्त्रियों तथा बच्चों के रोगों मे क्योंकि वे भय के शिकार रहते हैं - पुरुषों की अपेक्षा बच्चों तथा स्त्रियों के रोगों मे एकोनाइट ज्यादा असरकारक व उपयोगी होती है । क्योंकि बच्चे तथा स्त्रियाँ भय के शिकार जल्दी होते है इसलिये उनके भय - जन्य रोगों मे इसका विशेष उपयोग है । स्त्रियों में प्राय सर्दी लगने या भय के कारण जरायु तथा डिम्ब - ग्रन्थि का शोथ हो जाता है जिससे मासिक धर्म रुक जाता है । कमी - कभी भय से गर्भपात की सम्भावना भी रहती है । बच्चों में एकोनाइट तभी काम करता है जब रोग भय से उत्पन्न हुआ हो ।
>> नव - जात शिशु को मूत्र न आने पर - जिस बच्चे आघात लगा हो और इस एकदम लगे धक्के के कारण उसकी नवीन - परिस्थिति के प्रति प्रतिक्रिया मे रुकावट आ जाती है । प्राय उसे पेशाब नही उतरता । तो एकोनाइट की एक मात्रा समस्या को हल कर देती है ।
>> जिस तरफ़ लेटे उस तरफ चेहरे पर पसीना आना - एकोनाइट का मुख्य लक्षण यह भी है कि रोगी जिस तरफ लेटता है उसी तरफ चेहरे पर पसीना आता है । अगर वह करवट बदलता है तो पहला पसीने वाला भाग सूख जाता है, और दूसरी तरफ पसीना आने लगता हैं ।
>> श्वास कष्ट मे पसीना आना - कमी कभी ठंड, भय या ' शौक ' के कारण फेफडों की छोटी छोटी श्वास - प्रणालिकाए संकुचित हो जाती हैं और रोगी को दमे जैसी शिकायत हो जाती है । ऐसा श्वास - कष्ट स्नायु - प्रधान , रक्त - प्रधान स्त्रियों को अधिक होता है । उनकी श्वास जल्दी जल्दी चलता है , घबराहट होती है , श्वास लेने में प्रयास करना पडता है , श्वास एणालिकायें सूखी होने लगती हैं । ऐसे में एकोनाइट लाभप्रद होती हैं ।
" अल्पकालिक औषधि "
इसके प्रयोग में यह ध्यान रखना चाहिये कि यह दीर्घकालिक औषधि नहीं है । इसकी क्रिया थोडे समय तक ही रहती है , इसलिये इसे दोहराया जा सकता है ।
" एकोनाइट तथा सल्फर का पारस्परिक संबंध "
एकोनाइट तथा सलफ़र का पारस्परिक सम्बन्ध विशेष है । सल्फर में एकोनाइट के अनेक लक्षण पाये जाते हैं । जिन नवीन लक्षणों में एकोनाइट दिया जाता है और लक्षण पुराने हो जाए तो सल्फर का उपयोग किया जाता है । जब कोई ऐसा रोग मनुष्य को अचानक व प्रबल वेग से आया हो तो उसे एकोनाइट ठीक कर देता हैं । अगर शरीर मे उस रोग के बार - बार आने की प्रवृत्ति रहती है तो सल्फ़र ठीक करती है ।
" एकोनाइट शक्ति तथा प्रकृति "
स्नायु शूल में मदर टिंचर की एक बूंद 3 से 300 शक्ति में दी जाती हैं । यह औषधि दीर्घ - गामी नही है और नवीन रोगों में ही इसका बार - बार प्रयोग होता है ।
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