Monday, October 12, 2020

एगैरिकस ( AGARICUS ) औषधि के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग तथा गुण व फायदें


एगैरिकस ( AGARICUS ) औषधि के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग तथा गुण व फायदों को विस्तार से जानते हैं -

  • मांसपेशियों व विभिन्न अंगों का फड़कना 
  • मांसपेशियों में कम्पन्न , सोने पर कम्पन्न बन्द हो जाना 
  • शरीर पर चींटियों के चलने जैसा अनुभव होना 
  • वृद्धावस्था व अधिक मैथून से शारीरिक कमज़ोरी आना 
  • ठंड से त्वचा में सूजन आना 
  • चुम्बन की तीव्र इच्छा होना
  • मेरु दण्ड के रोग 
  • जरायु का बाहर निकलने जैसा अनुभव होना 
  • रोग के लक्षणों का तिरछा भाव 
  • क्षय रोग की प्रारंभिक अवस्था

" एगैरिकस औषधि की प्रकृति "

शारीरिक श्रम करने व धीरे - धीरे चलने - फिरने से इसके लक्षणों में कमी आती हैं।  सर्दी व ठंडी हवा में रहने से, मानसिक श्रम करने से, मैथून से, भोजन करने के बाद, आधी - तूफ़ान से और मासिक  धर्म के दिनों मे इसके लक्षणों में वृद्धी होती है।

" मांसपेशियों व अंगों का फड़कना "

मांसपेशियों तथा अंगो का फड़कना एगैरिकस औषधि का मुख्य लक्षण माना जाता है । इसमें मांसपेशियाँ तथा आँख फड़कती हैं, और अंगो में कम्पन्न होता है । अगर यह कम्पन्न बढ़ जाए तो ताडव  रोग  के लक्षण प्रकट होने लग जाते हैं । यह औषधि कम्पन्न में लाभप्रद होती है । 

" मांसपेशियों में कम्पन्न और सोने पर कम्पन्न बन्द हो जाना "

मांसपेशियों व अंगों के फडकने या कम्पन्न इस औषधि का विशेष लक्षण है । जब तक रोगी जागता रहता है तब यह कम्पन्न होता रहता है और जब वह सो जाता हैं,तो उसका कम्पन्न बन्द हो जाता है । 

" शरीर पर चींटियाँ चलने जैसा अनुभव "

सारे शरीर में ऐसा अनुभव प्रतीत होता हैं, जैसे शरीर पर चींटियाँ रेंग रही हो । यह अनुभव त्वचा के साथ-साथ मांसपेशियों में भी होता है । शरीर का हर भाग इस प्रकार के अनुभव को महसूस करता हैं । त्वचा या अन्य भागों पर कभी ठंडी , कभी गर्म सूई बेंधने का अनुभव होता है । शरीर के जिस अंग में रक्त का प्रवाह शिथिल होता हैं, उनमें चुभन व जलन महसूस होती हैं । ऐसी चुभन तथा जलन में ऐसा लगता हैं, मानो ये अंग ठंड से जम गये हो । इस लक्षण के होने पर किसी भी रोग में यह औषधि लाभ पहुँचाती है, क्योंकि यह इस औषधि का सर्वांगीण अथवा व्यापक लक्षण है । 

" वृद्धावस्था या अधिक मैथून से शारीरिक कमज़ोरी "

वृद्धावस्था में मनुष्य के रुधिर की गति धीमी पड़ जाती है , शरीर मे झुरियाँ पड़ जाती हैं और सिर के बाल झड़ने लग जाते है । अधिक मैथून क्रिया से शारीरिक कमज़ोरी होने लग जाती हैं । वृद्धावस्था मे रक्तहीनता के कारण और युवावस्था मे अधिक मैथून क्रिया के कारण या अन्य किसी कारण से रोगी में मेरुदण्ड सम्बंधी उपद्रव होने लगते हैं । 

जैसे मांसपेशियों का फड़कना , कमर दर्द , पीठ का कड़ा पड़ जाना और मेरूदंड का अकड़ जाना आदि । पैरो में कमजोरी, चक्कर आना , सिर भारी हो जाना , उत्साह नही रहना , काम करने का मन नहीं करना । और युवा व्यक्तियों मे जब अधिक मैथून क्रिया से उक्त लक्षण प्रकट होने लगे , तो एगैरिकस की कुछ बूंदे मस्तिष्क के स्नायुओं को शांत कर देती है । 

स्नायु प्रधान स्त्रियाँ मैथुन के उपरान्त हिस्टीरिया रोग से ग्रस्त हो जाती है और बेहोश हो जाती हैं। इस स्थिति में भी यह औषधि लाभकारी होती है । यह याद रखना जरूरी हैं कि केवल बुढ़ापा आ जाने से एगैरिकस नही दिया जाता । होम्योपैथिक में कोई भी औषधि केवल एक लक्षण पर नही दी जाती बल्कि  समष्टि लक्षण देखकर दी जाती हैं। 

" ठंड से त्वचा में सूजन आना "

अधिक ठंड से जब एगैरिकस में सूजन आ जाती हैं और उसमें लाल चकते पड़ जाते हैं, जिसके कारण त्वचा में बेहद खुजली और जलन होती हैं। ऐसी अवस्था में एगैरिकस बहुत अच्छा काम करती है। 

" चुंबन की अति  तीव्र इच्छा "

स्त्री तथा पुरुष में जब वैषयिक इच्छा तीव्र हो जाती है , जिसे भी चूमने की इच्छा रहती हैं अर्थात आलिंगन की प्रबल इच्छा, मैथुन के बाद अत्यन्त शारीरिक कमजोरी, मैथुन के बाद मेरुदण्ड के रोग में वृद्धी तथा जलन, अंगो में शिथिलता जैसी हालत में यह औषधि उपयुक्त और कारगर होती हैं । 

" मेरुदंड के रोग "

इस औषधि में मेरु दंड के अनेक रोग शामिल हैं । जैसे - मेरु दण्ड का कड़ा पड़ जाना , झुकने पर ऐसा लगना की पीठ टूट जाएगी, मेरू दण्ड में जलन , पीठ की मांसपेशियों कम्पन्न, मेरु दंड में विभिन्न प्रकार की पीड़ा , पीठ में कभी ऊपर कमी नीचे दर्द, स्त्रियों मे कमर के नीचे दर्द, अंगो का फड़कना आदि लक्षण में इस औषधि का इस्तेमाल होता हैं । 

" जरायु का बाहर निकलने जैसा अनुभव "

जब स्त्रियों को ऐसा प्रतीत होता हैं, कि उनका जरायु बाहर निकल पड़ जाएगा, तो वे अपनी टांगे सिकोड लेती हैं । इस लक्षण में अन्य औषधियाँ जैसे - सीपिया , पल्सेटिला , लिलियम या म्यूरेक्स दी जाती है। परन्तु इस लक्षण के साथ अगर मेरु दण्ड के लक्षण मौजूद हो, तो एगैरिकस दी जाती हैं । अगर जरायु के बाहर निकल पड़ने का लक्षण वृद्ध स्त्रियों में पाया जाए और उसके साथ उसकी गर्दन कांपती हैं, सोने पर कम्पन्न बन्द हो जाता हैं, उसके शरीर मे गर्म या ठंडी सूई बेधने जैसा अनुभव हो, तो भी  एगैरिकस औषधि दी जाती हैं । 

" रोग के लक्षणों का तिरछा भाव प्रकट होना "

इस औषधि का एक विलक्षण है कि रोग के लक्षण एक ही समय में तिरछे भाव से प्रकट होते हैं । जैसे - गठिया का दर्द दायें हाथ में और बायें पैर में एक साथ होगा, या फिर बायें हाथ और दायें पैर में होगा । इसी प्रकार अन्य रोग में भी तिरछे भाव प्रकट हो सकते है, परन्तु रोग एक ही होना चाहिये तो यह औषधि दी जाती हैं।

" क्षय रोग की प्रारंभिक अवस्था "

इस औषधि का रोगी को छाती में भारीपन अनुभव करता हैं, खाँसी के दौरे आते हैं और घबराहट के साथ पसीना आता है । खाँसी और छीकें एक साथ और लगातार आती हैं । होम्योपैथिक में एगैरिकस छाती के रोगों के लिये महान् औषधि मानी गई हैं। यह क्षय रोग में भी लाभ पहुँचाती हैं । रोगी को छाती में कष्ट, खाँसी जुकाम , रात में पसीना आना, स्नायु सम्बन्धि रोग, तेज़ खाँसी, नब्ज़ तेज़ होना, खाँसी में पस और कफ आना, रोगी की प्रात काल तबीयत गिरी - गिरी होती है । इन लक्षणों के होने पर इसे क्षय रोग की प्रारंभिक अवस्था मानी जाती है । इस प्रारंभिक अवस्था में यह औषधि लाभप्रद व कारगर होती है । 

इस औषधि के अन्य लक्षण 

  • रीढ़ की हड्डी के रोग के कारण रोगी बार - बार ठोकर खाकर गिर पड़ता है और हाथ से बर्तन बार - बार गिरना है । बर्तन का हाथ से बार - बार गिरना एपिस में भी पाया जाता है , परन्तु एगैरिकस का रोगी आग को पसंद करता है और एपिस आग से दूर भागता है । 
  • रीढ़ की हड्डी को दबाने से रोगी को हंसी आ जाती है, यह इसका अद्भुत  लक्षण है । 
  • एगैरिकस के रोगी को चलते समय पैर की एड़ी मे असहनीय पीड़ा होती है , जैसे किसी ने काट खाया हो । 
  • जैसे बच्चों का देर से बोलना सीखने पर नेट्रम म्यूर और देर से चलना सीखने पर केल्केरिया कार्ब दिया जाता हैं। परन्तु जब एक साथ बोलना और चलना दोनों देर से सीखने पर एगैरिकस दिया जाता है । 
  • एगैरिकस का यह अद्भुत लक्षण है कि रोगी को पेशाब करते समय मूत्र ठंडा लगता हैं। जबकि मूत्र बूंद बूंद कर निकल रहा होता है तब वह प्रत्येक बूंद को गिन सकता है । इस स्थिति में यह लाभ पहुँचाती है।
  • पुराने गोनोरिया के रोगियों में मूत्र करते समय मूत्राशय में देर तक सुरसुराहट बनी रहती हैं और मूत्र की अन्तिम बूंद निकलने में बहुत देर लगती हैं । इस लक्षण में पेट्रोलियम और एगैरिकस औषधियाँ दी जाती हैं। 
  • एगैरिकस का रोगी अपनी आखें घड़ी की तरह इधर - उधर घुमाता रहता है । वह पढ़ नहीं सकता, अक्षर उसके सामने से हटते जाते हैं । आँखों के आगे काली मक्खियाँ , काले धब्बे , जाला दिखाई देता है तो एगैरिकस दी जाती हैं। 

" एगैरिकस औषधि की शक्ति तथा प्रकृति "

यह औषधि 3 , 30, 200 और अधिक शक्तियों में दी जाती हैं और इस औषधि की प्रकृति शीत प्रधान हैं।


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