Friday, March 19, 2021

बेलाडोना ( BELLADONNA ) औषधि के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग व फायदें


बेलाडोना ( BELLADONNA ) औषधि के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग व फायदों का विस्तार पूर्वक वर्णन-

  • शोथ तथा ज्वर में भयंकर गर्मी, लालिमा तथा तेज जलन  
  • रक्त संचय की अधिकता, सिर दर्द, प्रलाप तथा पागलपन 
  • दर्द का एकाएक आना और एकाएक चला जाना 
  • रोग का एकाएक आना तथा प्रचंडता
  • रोशनी , शोर व स्पर्श सहन न कर पाना 
  • मूत्राशय की उत्तेजित अवस्था  
  • जरायु से रक्तस्राव 
  • दाईं तरफ असरकारक औषधि  
  • दोपहर 3 बजे से रात तक रोग में वृद्धि

" बेलाडोना की प्रकृति "


शरीर को ढकने से, बिस्तर पर आराम करने से और गरम कमरे मे रहने से रोग के लक्षणों में कमी आती हैं। जबकि छूने से, गंध से, शब्द से, वायु के झोंके से,  हिलने - डुलने से, दिन के 3 बजे से रात तक, सूर्य की गर्मी से और बाल कटवाने से रोग लक्षणों में वृद्धि होती हैं।


" शोथ तथा ज्वर में भयंकर गर्मी, लालिमा तथा तेज जलन "


बेलाडोना के शोथ में गर्मी, रक्तिमा तथा तेज जलन इसके विशिष्ट लक्षण हैं । इन्हें विस्तार से जानते हैं -

 

>> भयंकर गर्मी - फेफड़े, मस्तिष्क, जिगर, आंत्र तथा किसी अन्य अंग के शोथ में भयंकर उत्ताप होता हैं । इसके रोगी की त्वचा को छुआ जाए तो वह एकदम अपने को हटा लेता हैं, क्योंकि त्वचा में भयंकर गर्मी होती हैं । इतनी भयंकर कि हाथ हटा लेने के बाद भी कुछ समय तक गर्मी बनी रहती हैं । रोगी के किसी भी अंग में भी शोथ क्यों न हो, उसे छूने से भयंकर उत्ताप का अनुभव होता हैं । 


>> टाइफॉयड़ के उत्ताप में बेलाडोना देना उचित नहीं - टाइफॉयड में अगर इस प्रकार की गर्मी हो, तो बेलाडोना कभी नहीं देना चाहिए । क्योंकि औषधि की गति तथा रोग की गति में समरसता होना आवश्यक हैं । बेलाडोना के लक्षण एकाएक व बड़े वेग से आते हैं और एकाएक चले भी जाते हैं । टाइफॉयड़  धीरे - धीरे आता हैं, और धीरे - धीरे ही जाता हैं । बेलाडोना की गति और टाइफॉयड़ की गति में समरसता नही होती, इसलिए इसमें बेलाडोना देने से रोग बढ़ सकता हैं ।  


>> लालिमा - बेलाडोना का दूसरा मुख्य लक्षण लालिमा हैं । शरीर के जिस अंग में शोथ हुआ हैं, वह बेहद लाल हो जाता हैं । लालिमा के बाद इसका रंग हल्का या कुछ काला पड़ सकता हैं । शरीर की गांठों में शोथ होगी तो वह भी लाल रंग की होगी, गला पकेगा तो लाल रंग जैसा होगा । 


>> बेहद जलन - बेलाडोना का तीसरा मुख्य लक्षण बेहद जलन हैं । शोथ में, ज्वर, रक्त संचय तथा टॉन्सिल में बेहद जलन होती हैं । इतना ही नही कि यह जलन हाथ से छूने से अनुभव की जाय, रोगी को अपने आप भी जलन महसूस होती है ।  


>> सूजन जिसमें गर्मी, लालिमा और जलन हो - यदि शरीर के किसी अंग में सूजन हो, और सूजन को छुआ न जाए अर्थात असहिष्णुता इस औषधि का चरित्रगत लक्षण हैं। ऐसा अनुभव हो कि सूजन का स्थान फूट पड़ेगा, और साथ ही उस स्थान में गर्मी, लालिमा और जलन हो, तो बेलाडोना उचित औषधि हैं । यदि सूजन पकने लगे तो बेलाडोना लाभ नहीं करती । 


>> आंख का दर्द जिसमें गर्मी, लालिमा और जलन हो - आँख में गर्मी, लालिमा और जलन जो बेलाडोना के लक्षण हैं बेलाडोना लाभप्रद होती हैं । आंख से पानी आना, रोशनी में आंख न खोल पाना, आँखों में गर्मी, लालिमा और जलन हो तो उसे बेलाडोना ठीक कर देती हैं । 


>> बवासीर जिसमें गर्मी , लालिमा और जलन हो - ऐसी बवासीर जिसमें तेज दर्द हो, मस्से बेहद लाल हो, सूज गए हो, छू ना सके, जलन हो और रोगी टांगें पसार कर ही लेट पाए। ऐसी बवासीर में बेलाडोना उत्तम लाभ पहुँचाती हैं । 


>> गठिया जिसमे गर्मी, लालिमा और जलन हो -  गठिए के रोग में जब सभी जोड़ सूज जाते हैं, तब इन जोड़ों में गर्मी, लालिमा और जलन होती हैं ।  इसके साथ रोगी ' असहिष्णु ' होता है और जोड़ों को छूने नही देता । जरा - सा छू देने से दर्द होता हैं । वह बिस्तर पर बिना हिले - जुले पड़ा रहना पसंद करता हैं । जोड़ों में दर्द के साथ तेज बुखार में वह शांत पड़ा रहना चाहता हैं । बेलाडोना का रोगी सर्दी को बर्दाश्त नहीं कर पाता, कपड़े से लिपटा रहता हैं, हवा के झोंके से तकलीफ होती हैं और गर्मी से उसे राहत मिलती हैं ।

 

" रक्त संचय की अधिकता, सिर दर्द, प्रलाप तथा पागलपन "


अभी हमने गर्मी, लालिमा तथा जलन का उल्लेख किया हैं । इसका कारण रक्त का किसी जगह पर संचय हो जाना हैं ।  रक्त के किसी अंग में संचित हो जाने पर बेलाडोना सभी औषधियों मे उत्तम हैं । यह रक्त संचय सिर, छाती, जरायु, जोड़ों में या त्वचा पर कहीं भी हो सकता हैं । इस प्रकार के रक्त संचय का विशेष लक्षण यह हैं कि यह बड़े वेग से और एकाएक आता हैं । बेलाडोना के रोग वेग से आते हैं और एकदम चले जाते हैं। इन्हीं लक्षणों के कारण यह हाई ब्लड प्रेशर की भी उत्कृष्ट दवा हैं। 


>> रक्त संचय से सिर दर्द - जब रक्त का वेग सिर की तरफ चलता हैं, तो सिर दर्द होने लगता हैं। बेलाडोना में भयंकर सिर दर्द होता हैं, जिसे रोगी बर्दाश्त नहीं कर सकता, स्पर्श को सहन नहीं कर सकता, रोशनी और हवा को भी सहन नहीं कर पाता । सिर को हिलाने से सिर दर्द बढ़ जाता हैं। यह सिर दर्द सिर में रक्त संचय के कारण होता हैं। ऐसा सिर दर्द तेज ज्वर में हुआ करता हैं। रोगी अनुभव करता हैं कि रक्त सिर की तरफ दौड़ रहा हैं। बेलाडोना के सिर दर्द में सिर गरम होता हैं और हाथ - पैर ठंडे होते है, आंखें लाल, कनपटियों में टपकन होती हैं। लेटने से सिर दर्द बढ़ता है, रोगी पगड़ी से या किसी चीज़ से सिर को बांधे रखता हैं, तब उसे थोड़ा आराम मिलता हैं। 


>> रक्त के सिर की तरफ दौर से प्रलाप - बेलाडोना में रक्त का सिर की तरफ दौर इतना जबरदस्त होता हैं कि रोगी की प्रबल प्रलाप तथा बेहोशी की अवस्था हो जाती हैं । यदि उसे नींद आ रही हो, तब भी वह सो नहीं पाता । रोगी सिर को तकिये पर इधर - उधर पटकता हैं । कभी - कभी वह प्रगाढ़ निंद्रा में पहुंच जाता हैं, जिससे उसे घबराहट भरे स्वप्न आते हैं । इस दौरान वह प्रलाप भी करने लगता हैं। उसे भूत प्रेत, राक्षस, काले कुत्ते, सांप व भिन्न - भिन्न प्रकार के कीड़े - मकोड़े दिखाई देते हैं । यह सब रक्त का सिर की तरफ दौर होने के कारण होता हैं । 


>> पागलपन - जब रक्त का सिर की तरफ दौर बहुत अधिक होता हैं, तब बेलाडोना में पागलपन की अवस्था आ जाती हैं । वह अपना भोजन मंगवाता है, परन्तु खाने के बजाय चम्मच और प्लेट को चबाता हैं, कुत्ते की तरह नाक चढ़ाता हैं और भौंकता हैं । रोगी अपना गला घोटने का प्रयत्न भी करता हैं, और दूसरों को कहता है कि वे उसे मार दे । हाय - हाय करना इस औषधि की विशेषता है । ठीक हालत में हो या न हो, वह हाय - हाय करता हैं । अधिक बोलता है, बोल - चाल  और काम करने में बहुत तेजी आ जाती हैं । बिना अर्थ के कुछ भी जल्दी - जल्दी बड़बड़ाता रहता हैं । उसे ऐसे काल्पनिक भयंकर दृश्य दिखाई देते हैं जिनसे जान बचाने के लिए भागता है या छिप जाता हैं । उसका पागलपन उत्कृष्ट उन्माद पर होता हैं, जिसमे वह तोड़फोड़, मारपीट, दूसरो पर थूकता है और गाली - गलौज करता हैं । होम्योपैथिक में पागलपन की तीन दवाओं पर विशेष बल दिया है जैसे- बेलाडोना, हायोसाइमस तथा स्ट्रेमोनियम ।  


" दर्द का एकाएक आना और एकाएक चला जाना "


लक्षणों का एकाएक आना और एकाएक चले जाना बेलाडोना का चरित्रगत लक्षण हैं । यह लक्षण तब स्पष्ट होता हैं, जब कोई भी दर्द एकदम आए और एकदम ही चला जाए , तो वह बेलाडोना से ठीक हो जाता हैं ।  कभी - कभी यह दर्द कुछ मिनट रहकर ही चला जाता हैं । 


" रोग का एकाएक आना तथा प्रचंडता "


हमें यह याद हैं कि बेलाडोना में रोग बडे वेग और प्रचंड रूप में आता हैं । ' प्रचंडता ' और ' एकाएक ' इस औषधि के मूल लक्षण हैं । जैसे - किसी प्रकार का दर्द हो, प्रचंड सिर दर्द, धमनियों का प्रचट - स्पन्दन, प्रचंड डिलीरियम , प्रचंड पागलपन, प्रचंड ऐंठन । 


" रोशनी , शोर व स्पर्श सहन न कर पाना "


इसके रोगी की पांचों इंद्रियों में अत्यंत अनुभूति उत्पन्न होती है । रोगी आँखो से रोशनी, कानो से शब्द, जीभ से स्वाद, नाक से गंध, त्वचा से स्पर्श की अनुभूति साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक होने लगती हैं ।  रोगी रोशनी, शब्द, गंध, स्पर्श आदि को सहन नहीं कर पाता । उसका स्नायु मंडल उत्तेजित रहता हैं । स्नायु मंडल की उत्तेजना बेलाडोना का मुख्य लक्षण हैं ।  बेलाडोना के रोगी के मस्तिष्क में जितना रुधिर संचित रहता हैं, उतनी असहिष्णुता बढ़ जाती हैं । स्पर्श की असहिष्णुता उसमे इतनी होती हैं कि सिर के बालों में कंघी तक नहीं कर सकता ।

 

" मूत्राशय की उत्तेजित अवस्था "


बेलाडोना मूत्राशय तथा मूत्र नली की उत्तेजित अवस्था को शान्त करने वाली सबसे उत्तम औषधि हैं । पेशाब करने की इच्छा लगातार बनी रहती है । पेशाब बूंद - बूंद कर निकलता हैं, पूरी मूत्र प्रणाली उत्तेजित अवस्था में रहती हैं। मूत्राशय में रक्त संचय और उसकी उत्तेजित अवस्था होने से उस स्थान को छुआ तक नहीं जा सकता । मानसिक अवस्था भी चिड़चिड़ी हो जाती हैं । मूत्राशय में मरोड़ होती हैं और मूत्र में रक्त तक आ जाता हैं । मूत्राशय में थोड़ा सा भी मूत्र इकट्ठा होता हैं, तो पेशाब जाने की इच्छा होती हैं,  दर्द होता हैं लेकिन मूत्र नहीं निकलता । 


" जरायु से रक्तस्राव व असहिष्णुता "


बेलाडोना में ' असहिष्णुता ' का लक्षण होता हैं, किसी भी अंग को छूने पर दर्द होता हैं । जरायु में असहिष्णुता हो जाती हैं, और उसमें से थक्कों के साथ चमकता हुआ रक्त निकलता हैं ।  बेलाडोना का जरायु में रक्तस्राव का यह मुख्य लक्षण हैं । जरायु रक्त के थक्कों से अट जाता है, और इस अटकाव को दूर करने के लिए जरायु में से इस प्रकार की संकोचन की लहर उठती है जिस प्रकार प्रजनन के समय होती हैं, तब रक्तस्राव हो जाता हैं । जरायु असहिष्णु व नाजुक हो जाता है, इसलिये वह अंदर एकत्रित रक्त के थक्कों के स्पर्श को बर्दाश्त नहीं कर पाता । यदि गर्भपात में इस प्रकार के लक्षण उपस्थित हो, या किसी भी समय इस प्रकार के लक्षण उत्पन्न हो, तो बेलाडोना इस प्रकार के रक्तस्राव को रोक देती हैं ।  


" दाईं तरफ असरकारक औषधि "


बेलाडोना अनेक दाई तरफ वाले रोगों में प्रभावशाली औषधि हैं । उदाहरणार्थ- स्त्री का दाया डिम्बकोश बायें की अपेक्षा ज्यादा दर्द करता हैं, गले का दाया हिस्सा या शरीर का दाया हिस्सा रोग से प्रभावित होता है तो यह दवा अति उत्तम हैं ।


" दोपहर 3 बजे से रात तक रोग में वृद्धि "


बेलाडोना का ज्वर दोपहर 3 बजे से प्रारंभ होता हैं और रात तक बढ़ जाता हैं । मध्य रात्रि में रोग चरम सीमा पर होता हैं । इसका तापमान 104-105 तक होकर सुबह तक सामान्य हो जाता हैं । 


" बेलाडोना औषधि के अन्य लक्षण "


>> जरायु का योनि द्वार से निकल पड़ने का  अनुभव - स्त्री अनुभव करती है कि उसका जरायु  अग योनिद्वार से निकल पड़ेगा । बेलाडोना में लेटने से यह स्थिति बढ़ जाती हैं और खड़े होने पर आराम मिलता हैं ।  बेलाडोना का रोगी शीत प्रधान होता हैं। 


>> रात को सूखी खांसी का दौरा पड़ना - बेलाडोना की खांसी विलक्षण होती हैं। ज़ोर - जोर से लगातार खासने पर जब थोडा सा कफ निकलता हैं, तब रोगी को थोड़ी देर के लिए आराम मिल जाता हैं, परन्तु इस दौरान श्वास प्रणाली में खुश्की बढ़ती जाती है और खुजली शुरु हो जाती हैं, उसके बाद फिर से खांसी का दौर पड़ता हैं । गला रुधने लगता है, कभी - कभी उल्टी आ जाती है, तब जाकर थोड़ा कफ फिर से निकलता है, और अब फिर आराम मिल जाता हैं । इस प्रकार के खांसी के दौर पड़ते रहते हैं । बेलाडोना इस प्रकार की खाँसी में लाभप्रद होती हैं।


>> ऐंठन - ऐंठन बेलाडोना का चरित्रगत लक्षण हैं । बच्चो की ऐंठन में यह अति उपयोगी दवा हैं । शरीर के किसी भी अंग में ऐंठन हो सकती हैं । मस्तिष्क में रक्त संचय या उसके उत्तेजित होने पर ऐंठन होती है । हृष्ट - पुष्ट बच्चों को सर्दी लग कर भी ऐंठन हो जाती है । लेकिन ऐंठन का नाम सुनते ही बेलाडोना दे देना उचित भी नहीं है । क्यूप्रम भी ऐंठन के लिये प्रसिद्ध दवा हैं । क्यूप्रम में हाथ - पैरों का ऐंठन मुख्य हैं । बेलाडोना की ऐंठन में चेहरा और आंख लाल, सिर आग की तरह गरम, तेज बुखार और कनपटियों में टपकन होती हैं । रोगी शरीर को कभी आगे और कभी पीछे की ओर झुकाता हैं । 


>> पथरी में अंग संकोच - ऐंठन और अंग संकोच में बहुत अधिक अंतर नहीं हैं । अंग संकोच अंग का दौरा पड़ना है और ऐंठन एक अंग या पूरे शरीर में दौरा पड़ना हैं । कभी - कभी छोटा सा पथरी का टुकडा मूत्र प्रणाली से गुजरता हैं, तो  घर्षण पैदा करता हैं, जिससे मूत्र प्रणाली में ऐंठन या संकोच उत्पन्न हो जाता हैं । इस अंग संकोच से जो दर्द होता है उससे रोगी छटपटा जाता हैं । बेलाडोना इस संकोच को अर्थात पथरी का टुकड़ा  मूत्र प्रणाली से बाहर निकालने वाली एक मात्र दवा हैं । 


>> अपेंडिसाइटिस - पेट के दाहिनी ओर नीचे के भाग में जहां छोटी आंत और बड़ी आंत मिलती हैं उस स्थान मे अत्यन्त पीड़ा होना तथा कपड़े तक लग जाने से भी असह्य पीड़ा का अनुभव होना अपेंडिसाइटिस का लक्षण हैं । यदि इसके साथ बेलाडोना के अन्य लक्षण मिलते हो तो इससे फायदा होता हैं । 


>> फ्लुरिसी - फेफड़ों के आवरण के शोथ को प्लुरिसी कहते हैं । इसमें अत्यंत दर्द होता हैं । रोग की उत्पत्ति मुख्य तौर पर दायीं तरफ होती हैं । 


>> त्वचा पर दाने - त्वचा पर दानों के लिये बेलाडोना के अलावा भी अन्य औषधियां हैं । बेलाडोना के दाने उत्ताप, लाल व जलन पैदा करने वाले होते हैं । ये दाने चमकीले, उभरे हुए न होकर त्वचा के साथ मिले होते हैं । रोगी गर्मी पसन्द करता है , प्यास लगती है तो थोड़ा - थोड़ा करके बार बार पानी पीता हैं । 


>> ढके स्थान पर पसीना आना - बेलाडोना में शरीर का जो अंग ढका हुआ होता हैं, वहाँ पर पसीना आ जाता हैं।


" बेलाडोना की शक्ति तथा प्रकृति "


बेलाडोना अनेक रोग साधक औषधि हैं । इसका असर  अल्पकालिक होता हैं, अत: इसे दोहराया जा सकता हैं । बार - बार आने वाले रोगों में यह  उपयुक्त नहीं हैं ।  बेलाडोना 30, 200 शक्ति में दिया जाता हैं । यह शीत प्रकृति की औषधि हैं ।

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