ऐसाफैटिड़ा औषधि ( ASAFOETIDA ) के व्यापक लक्षण, मुख्य रोग व फायदों का विस्तार पूर्वक विवरण-
- फूला हुआ, स्थूल, ढीला-ढाला, लाल-नीला चेहरा
- हिस्टीरिया में पेट से गले की ओर गोलक का चढ़ना
- पेट में ऊर्ध्वगामी वायु व बड़ी - बड़ी डकारे आना
- रात को हड्डियों में दर्द
- रोग का बायीं तरफ से प्रारंभ होना
" ऐसाफैटिड़ा की प्रकृति "
खुली हवा मे घूमने से रोगी को आराम व रोग के लक्षणों में कमी आती हैं। जबकि रात में, बन्द कमरे में, स्राव के रुक जाने पर, गर्म कपड़ा लपेटने पर, बायीं ओर लेटने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती हैं।
" फूला हुआ, स्थूल, ढीला - ढाला, लाल - नीला चेहरा "
मानव शरीर में दो प्रकार की रक्तवाहिनीयाँ होती हैं- ' धमनियाँ ' व ' शिराए ' । धमनियों में हृदय से शुद्ध रक्त शरीर में जाता है, और शिराओं से अशुद्ध रक्त फेफड़ों द्वारा शुद्ध होने के लिये हृदय में लौटता हैं । शिराए काम करना बंद कर दे, तो नीला खून शरीर में जगह - जगह रुक जाता हैं, जिससे चेहरा फूला हुआ, ढीला - ढाला और रक्त नीलिमायुक्त हो जाता हैं ।
ऐसे रोगी देखने में मोटा ताज़ा लगता हैं, परन्तु शिराओं की शिथिलता के कारण उसका चेहरा फूला हुआ होता हैं । ऐसे रोगी के हृदय में कुछ विकार होता है, जिसके कारण उसके शरीर में ' शिरा रूधिर स्थिति ' पाई जाती हैं । ऐसे रोगियों का इलाज कठिन होता हैं, ये ' शिरा प्रधान शरीर ' के रोगी होते हैं और इन्हें कई प्रकार के स्नायवीय रोग होते हैं, जिनमें ऐसाफैटिडा लाभदायक हैं ।
" हिस्टीरिया में पेट से गले की ओर गोलक का चढ़ना "
यह इस औषधि का प्रधान लक्षण हैं । इसे नीचे उतारने के लिये रोगी बार - बार अंदर निगलने की कोशिश करता हैं , परन्तु उसे ऐसा लगता है कि यह गोलक पेट से ऊपर चढ़ता चला जाएगा । इसका कारण यह है कि वायु की गति अधोगामिनी होने की बजाय अर्ध्वगामिनी हो जाती हैं ।
आंतों में एक विशेष प्रकार की गति होती है जिससे भोजन या मल आगे बढ़ता हैं । इसे ' अग्र गति ' कहते हैं । इस औषधि के रोगी में ' प्रतिगामी अग्र गति ' होती हैं, जिसके कारण वायु आगे की तरफ जाने के बजाय पीछे की तरफ जाती हैं, और इसे ही हिस्टीरिया रोग कहते हैं। जिसमें रोगी को एक गोलक का पेट से गले की तरफ चढ़ने जैसा कष्ट अनुभव होता हैं।
" पेट में ऊर्ध्वगामी वायु व बड़ी - बड़ी डकारे आना "
ऐसाफैटिड़ा में वायु का निकास नीचे से बिल्कुल बन्द हो जाता हैं। रोगी ' प्रतिगामी अग्र गति ' से पीड़ित हो जाता हैं । पेट से इतनी हवा ऊपर से डकार के रूप में निकलती हैं, जिस पर रोगी का कोई बस नहीं होता । ऐसाफैटिड़ा बहुत ही कारगर औषधि हैं।
" रात को हड्डियों में दर्द "
आतशकी के रोगियों की तकलीफे रात को बढ़ जाती हैं । रात को हड्डियों में दर्द होता हैं । इस दवा में आतशकी मिजाज़ होने के कारण हड्डियों में और हड्डियों के परिवेष्टन में रात को दर्द होता हैं । यह दर्द हड्डी के अन्दर से बाहर की ओर आता हैं । सिर दर्द या किसी भी अंग की हड्डी के भीतर उठने वाला दर्द इस औषधि का लक्षण हैं ।
" रोग का बायीं तरफ से प्रारंभ होना "
इस औषधि में पेट, हड्डी, या शरीर के किसी अंग पर प्रभाव हो सकता हैं, परन्तु शुरूआत शरीर के बायें भाग होता हैं । होम्योपैथिक में बायीं ओर से शुरू होने वाले रोगों में बहुत दवाइयाँ होती हैं । लेकिन ऐसाफैटिड़ा अपना विशेष स्थान रखती हैं।
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