एलेन्थस ग्लेंडुलोसा ( AILANTHUS GLANDULOSA ) व्यापक लक्षण, मुख्य रोग तथा गुण व फायदों का विस्तार से विश्लेषण-
- स्कारलेटीना, गले के रोगों व दाने न उभरने के रोगों में
- मीजल्स ( छोटी चेचक ) या डिफ्थीरिया रोग में
" एलेन्थस ग्लेंडुलोसा प्रकृति "
इस औषधि की प्रकृति यह हैं कि गर्म पानी या गर्म पेय पीने पर रोग के कमी लक्षणों में और होती हैं । और दाने न उभरने की स्थिति में रोग में वृद्धि होती हैं ।
" स्कारलेटीना "
गले के रोगों में व दाने न उभरने के रोगों में - स्कारलेटीना एक संक्रामक फैलने वाला रोग हैं । स्कारलेटीना रोग में त्वचा पर नारंगी रंग के दाने उभर आते हैं, और साथ ही हल्का या गंभीर ज्वर भी होता हैं। रोगी तन्द्रा में रहता है , डिलीरियम भी हो जाता हैं, गला सूज जाता हैं, और अन्दर से काला और नीला दिखता हैं, टाँसिल बढ़ जाते हैं और उनमे से बदबूदार पतला पस निकलता है । तो रोगी को यह औषधि दी जाती हैं ।
" स्कारलेट - ज्वर तीन प्रकार का होता है "
पहला -रोग के प्रथम प्रकार को ' Scarlatina Simplex ' कहते है , क्योंकि यह रोग की साधारण अवस्था है। कभी यह बहुत हल्का होता हैं, दाने आसानी से निकल आते हैं और ज्वर भी अधिक नहीं होता हैं। रोगी की अच्छी देखभाल करने व उसे गर्म कमरे में रखने से वह बिना औषधि के स्वयं ठीक हो जाता है ।
दूसरा - रोग के दूसरे प्रकार को ' Scarlatina Anginosa ' कहते है , क्योंकि यह विशेषकर गले पर आक्रमण करता है ,इसमें त्वचा लाल , कोमल और चमकदार होती हैं । यह रोग भयंकर रुप धारण नहीं करता हैं। इसमें ज्वर न होकर भी अधिक कष्टकर होता है । इममें कष्ट गले में होता हैं, और गला अन्दर से सूज जाता हैं और दर्द करता हैं। इसके साथ ही दाने बहुत कम निकलते हैं, मेरुदण्ड के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, कमर और गर्दन में दर्द होता हैं।
तीसरा - रोग के तीसरे प्रकार को ' Scarlatina Maligna ' कहते हैं, जिसमें गला भीतर से गंभीर रूप से सूज जाता है , और रूधिर के विषाक्त होने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, टाँसिल सूज जाते हैं , त्वचा फूल जाती है , दुर्गन्ध आने लगती है और दाने बहुत कम या न के बराबर होते हैं । अगर तीसरे प्रकार के स्कारलेट ज्वर का उपचार ठीक से न हो सके तो रोगी मर भी सकता है । यह रोग की अत्यन्त भयकर अवस्था है ।
" तीसरे प्रकार के स्कारलेटीना की अन्य औषधि "
अगर त्वचा पर स्कारलेटीना के दाने हो, तो त्वचा को अँगुली से दबा कर देखे । और दबा कर अँगुली हटाने के बाद त्वचा सफेद बनी रहे, और वह स्थान रूधिर से भरने में बहुत समय लगाये, तो वह तीसरे प्रकार का भयंकर स्कारलेटीना हैं। इस अवस्था में एलेन्थस ग्लेंडुलोसा का प्रयोग अत्यन्त लाभप्रद होता हैं । त्वचा पर दाने न उभरना , गले में भयंकर रूप से टाँसिल का सूज जाना, उसका रंग नीला हो जाना, रोग का डिफथीरिया जैसा रूप हो जाना, रोगी का अत्यंत कमजोर हो जाना । ये सभी लक्षण एलेन्थस ग्लेंडुलोसा औषधि के है, चाहे वह स्कारलेटीना हो या नही।
" स्कारलेटीना में अन्य औषधियों में तुलना "
रोगीं के लक्षणों को देखकर यह नही समझना चाहिये कि उसे स्कारलेटीना है । रोगी के दाने एकोनाइट के हो सकते हैं , परन्तु एकोनाइट मे इतनी अधिक सड़न नही होती । ये दाने बैलेडोना के हो सकते हैं, परन्तु बैलेडोना के दाने चमकदार और चिकने होते हैं। ये दाने एलेन्थस ग्लेंडुलोसा के हो सकते हैं, एलेन्थस ग्लेंडुलोसा का प्रयोग उस हालत में किया जाता हैं। जब दाने न उभर कर गले मे भयंकर टाँसिल हो, मस्तिष्क में डिलोरियम हो और अत्यधिक ज्वर हो ये सभी इस रोग की तीसरी अवस्था को उत्पन्न कर देते हैं ।
" मीजल्स ( छोटी चेचक ) या डिफथीरिया "
छोटी चेचक में जब रोग बिगड जाता है , दाने नहीं निकलते या निकल कर एकदम दब जाते हैं या नीले पड़ जाते हैं, तब एलेन्थस ग्लेंडुलोसा अच्छा काम करती है । डिफथीरिया या अन्य गले की बीमारियो में इसको दिया जाता है । इसका उपयोग मुख्य रूप से उन बीमारियों में होता हैं, जिनमे दाने देर से निकलते हो या दाने न निकलें या निकल कर दब जायें, रोगी बेसुद पड़ा रहे, डिलीरियम में आ जाए, बैचेन रहे, चक्कर आते हो, जी मिचलना , उल्टी करे - इन सभी लक्षणों में यह औषधि लाभप्रद व कारगर होती है ।
" एलेन्थस ग्लेंडुलोसा औषधि की प्रकृति व शक्ति "
यह औषधि 1,3,6,30 व अधिक शक्ति में दी जाती हैं और यह शीत प्रधान औषधि हैं।
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